महयोगिनी वृक्ष कम लागत में अधिक लाभ 2023

 महायोगिनी के वृक्ष कम: लागत में अधिक लाभ, दोस्तों आज हम बात करेंगे महयोगिनी वृक्ष के बारे मे

 महायोगिनी वृक्ष

 महायोगिनी वृक्ष से प्राप्त लकड़ी विश्व में प्रसिद्ध है। इस वृक्ष की लकड़ी विश्व भर में अपनी सुंदरता, मजबूती, स्थायित्व, रंग, चमकदार एवं चिकनाहट  आदि गुणों के कारण प्रसिद्ध है। महायोगनी वृक्ष को इन गुणवतताओं के कारण ही इसे ग्रीन गोल्ड भी कहा जाता है।महायोगिनी के वृक्ष कम: लागत में अधिक लाभ

 महायोगिनी का वृक्ष सीधा, दरार मुक्त एवं छिद्र मुक्त होता है। इसकी लकड़ी में कीड़े नहीं लगते है। जिससे फर्नीचर आदि के निर्माण में इसका उपयोग आसानी से किया जाता है। महायोगिनी वृक्ष की लंबाई लगभग 5 मीटर से अधिक होती है। इसे रेडिश ब्राउन रंग एवं पत्तियों की चमक से आसानी से पहचाना जा सकता है।

 इसकी छाल का रंग गहरा भूरा होता है। इसके तने काफी बड़े व होते हैं तथा काफी घने होने के कारण इसका ऊपरी हिस्सा मुकुट की तरह दिखाई देता है। इसकी लकड़ी मजबूत एवं टिकाऊ होती है। महायोगीनी वृक्ष की लकड़िया अन्य इमारती लकड़ियों से 4 गुना महंगी होती है। जिससे अधिक लाभ कमाया जा सकता है।

 रोपण

 महायोगिनी का रोपण या नर्सरी तैयार करने का उपयुक्त समय मानसून की पहली बारिश के बाद होता है। इसमें फूल जुलाई से नवम्बर के बीच आते हैं तथा इसके फल मध्य बारिश तक अपने पूर्ण आकर में आ जाते हैं। 

किंतु इसके बीज मई से अगस्त पक कर तैयार हो जाते हैं। इन बीजों के द्वारा नर्सरी तैयार की जा सकती है। नर्सरी तैयार हो जाने के बाद इसका रोपण किया जा सकता है। इसका रोपण जुलाई-अगस्त में किया जा सकता है।

 उत्पादन

महायोगिनी के वृक्ष के उत्पादन के लिए महायोगिनी के बीज देश के वन अनुसंधान केंद्रों (FOREST RESEARCH INSTITUTE) से प्राप्त किया जा सकता है और किसी भी प्रकार की समस्या होने पर केरला फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों से संपर्क कर सकते हैं।

 महायोगिनी एक जल्दी तैयार होने वाला वृक्ष है। जब इसका तना 30 सेंटीमीटर व्यास हो जाता है तभी से वृक्ष में फूल व फल आने लगते हैं तथा दक्ष का ब्यास बढ़ने के साथ फूल और फल का उत्पादन भी बढ़ता जाता है।जब वृक्ष का व्यास 30 से 70 सेंटीमीटर हो जाता है तब वृक्ष से प्रतिवर्ष लगभग 50 फल प्राप्त होने लगते हैं। 70 सेंटीमीटर व्यास से बड़े महायोगीनी वृक्ष प्रतिवर्ष 200 फलों का उत्पादन कर सकते हैं और इससे अधिक भी फलों का उत्पादन कर सकते हैं। यह सिर्फ आकार लंबाई पर निर्भर करता है।

महयोगिनी के वृक्ष 2023
महयोगिनी के वृक्ष

महायोगिनी के एक फल में लगभग 60 बीज होते हैं। किन्तु उनमें से 35 से 45 बीज ही अंकुरित होते हैं। बीज परिपक्व होने पर वृक्ष से फल तोड़ना उचित होता है यदि वृक्ष पर फल का आवरण खुल गया तो इसके बीज वृक्ष से लगभग 100 मीटर की दूरी पर जाकर गिरते हैं, जिन्हे प्राप्त करना प्राय: असंभव हो जाता है तथा गिरे हुये बीज मिट्टी में उपलब्ध धातुओं के साथ मिल जाते हैं जिसके कारण उनका अंकुरण नहीं हो पाता जिसके कारण भी बीज खराब हो जाते हैं या  बीज नष्ट हो जाते हैं।

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 प्रबंधन

 महायोगिनी के बीज 2 से 4 सप्ताह में अंकुरित होने लगते हैं। बीजों के रोपण से पूर्व उन्हें कम से कम 12 घंटे के लिए पानी में भिगो दिया जाता है। थंब रूल के हिसाब से 2 से 3 बीजों का रोपण करने पर कम से कम एक पौधा तैयार हो जाता है।

बीजों के अंकुरण के के लिए नमी युक्त भुरी-भुरी मिट्टी उपयुक्त होती है। जमीन में इसे 30 सेंटीमीटर नीचे तक लगाया जाता है। बीज को बहुत नीचे भी नहीं रोपा जाता है। यदि पौधे नर्सरी में तैयार करने हो तब उन्हें 10 से 12 सेंटीमीटर के व्यास तथा 30 सैंटीमीटर व्यास के गहराई वाले पौधारोपण बैग में बीज का रोपण करना चाहिए।

 नर्सरी में पौधे तैयार करते समय यह ध्यान रखना अत्याधिक आवश्यक है कि पौधे के रोपण स्थान की मिट्टी पौधे तैयार करते समय उपयोग में लायी गई मिट्टी समान होनी चाहिए। महायोगीनी के बीजों का रोपण बारिश के समय करने से पानी की अधिकता के कारण फंगल संक्रमण तथा चूहों द्वारा बीज नष्ट कर देने का खत्म बढ़ जाता है।

 रोपण के समय मिट्टी में नमी की उपलब्धता पर्याप्त होना चाहिए किंतु गीली भी नहीं होना चाहिए। इसलिए बीजों का रोपण बारिश के तुरंत बाद करना उपयुक्त होता है। क्योंकि बारिश के बाद मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है जो कि पौधे की वृद्धि के लिये उपयुक्त समय है। इन बीजों का रोपण मृत पेड़ों की जडों पर करने से भी इनकी वृद्धि अच्छी होती है।

पौधे तैयार करते समय रोपण स्थान के ऊपर आधा शेड लगाकर हल्की छाया कर दें। बीजों से तैयार पौधों का रोपण के समय दो पौधों के बीच की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर होनी चाहियें। रोपण भूमि पर पर्याप्त सूर्य का प्रकाश प्राप्त होना चाहिये। महायोगीनी के पौधों को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है।

 ये पौधे पहले साल में 1 से 2 मीटर के हो जाते हैं तथा उपयोग हेतु जल्द ही वृक्ष के रूप में तैयार हो जाते हैं। एक बार जब बीज अंकुरित होने लगता है। तब उसमें जल्द ही पत्तियां आ जाती है। जब पौधा 15 से 17 सेंटीमीटर लंबा हो जाता है तब सामान्यता: वृक्ष में लगभग 4से 8 पत्तियां वृक्ष में आ जाती है।

महायोगीनी का पौधा साल भर में 3 से 4 फीट बढ़ जाता है। जैसे-जैसे समय बीतता जाता है वैसे-वैसे वृक्ष के आकार लंबाई में वृद्धि होती जाती है। महायोगिनी का वृक्ष बहुत तेजी से शीघ्रता के साथ तैयार हो जाता है।

 उपयोग एवं लाभ

 महायोगीनी अत्यधिक मूल्यवान एवं अपने विशेष गुणों के कारण विश्व में प्रसिद्ध है। इसका लाल भूरा रंग समय के साथ -साथ गहरा होता जाता है तथा रंग रोगन के बाद रेडिश कलर में दिखता है। इससे प्राप्त इमारती लकड़ी बहुत हल्की, चिकनी तथा सुंदर होती है। महायोगिनी की लकड़ी में आसानी से कीट नहीं लगती है अर्थात महायोगिनी की लकड़ी में सड़न के विरुद्ध प्रतिरोधी क्षमता होती है। महायोगिनी के इन्ही गुणों कारण विश्व भर में फर्नीचरों में उपयोग किया जाता है।

 इसका उपयोग याट नाव, दरवाजे,चौखट, खिड़की, छोटे हवाई जहाज बाघ यंत्र आदि के निर्माण में किया जाता है। इन लकड़ियों का उपयोग सोलवीं शताब्दी में जहाज की बिल्डिंग बनाने के लिए किया जाता था साथ ही इसके बीजों का उपयोग कैंसर, डायबिटीज, हार्ट अटैक जैसी बीमारियों की दवाएं तैयार करने के लिए किया जाता है।

 महायोगिनी के वृक्ष में 10 साल के बाद तैयार हो जाता है तथा परिपक्वता आ जाती है और मूल्यवान हो जाता है। इन्हें मेंढो को सुरक्षित रखने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। इनकी जडें सीधी होने के कारण खेत की फसल के लिये हानिकारक नहीं होती और इनकी पत्तियां खेत में गिरने से फसल को जैविक खाद प्राप्त होती है।

 कृषकों के लिये तो यह वृक्ष ज्यादा लाभदायक सिद्ध हो सकता है। खेतों की मेड़ों पर इसके पेड़ों को आसानी से रोपा जा सकता है। इस वृक्ष के पेड़ कम मात्रा में पाये जाते है। जिसका प्रमुख कारण है महायोगिनी के विषय में किसानों को जानकारी ना होना और इसके बीजों की उपलब्धि ना होना।

यदि कृषक लोग इसकी उपयोगिता और आवश्यकता को समझ लें तो निश्चित ही किसानों को अतिरिक्त आय का सरल जरिया मिल सकता है। महायोगिनी से भी एक निश्चित आय का स्त्रोत सृजित किया जा सकता है।