स्वच्छ रहेगा गांव तो स्वस्थ रहेगा समाज स्वच्छता पर निबंध

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हमारे जीवन में स्वच्छता होना अति आवश्यक है। स्वच्छता हमारे जीवन में एक विशेष स्थान है। हमारे जीवन में गंदगी (अस्वच्छता) एक ऐसा शब्द है जिससे सब घृणा करते हैं और कोई भी इंसान इसे पसंद नहीं करता है।

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सब चाहते हैं कि  गंदगी दूर रहे।लेकिन यह प्रयास सब का होता है। लेकिन यह प्रयास सामूहिक न होकर व्यक्तिगत होता है। जिसके कारण हम अपने घर की गंदगी को हटा देते हैं पर हमारे आस-पास की नहीं।

जिसके लिए हमें एक जुट होकर सामूहिक रूप से आगे आने की आवश्यकता है।

कहा गया है कि जहां स्वच्छता होती है वहां लक्ष्मी का वास होता है। वह स्वच्छता घर में हो, शरीर की हो या गांव की हो। यह बात यह बात हम वर्षों से पढ़ते आ रहे हैं,सुनते आ रहे हैं।

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 हम अब तक पढ़ी-सुनी बातों से ऊपर नहीं उठ पाये हैं। आज जरूरत इन वाक्यों का आत्मसात करने की है। स्वच्छता केवल एक की नहीं बल्कि समस्त समाज की जिम्मेदारी में है। महात्मा गांधी से लेकर समस्त राजनेताओं और समाजसेवियों की प्राथमिकता में स्वच्छता प्रमुख में रही है।

 स्वच्छता किसी एक संगठन या समाज का कार्य नहीं है बल्कि यह एक ऐसा कार्य है जो सामूहिकता से ही प्रदर्शित हो सकता है या परिणाममूलक बन सकता है।गांव,कस्बे और शहर सब जगह स्वच्छता महत्वपूर्ण है

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जनभागीदारी के बगैर हम स्वच्छता की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम सबको इस पुनीत कार्य में तन, मन और धन से जुड़े।

स्वच्छ रहेगा गांव तो स्वस्थ रहेगा सामाज स्वच्छता पर निबंध स्वच्छता का महत्व

जहां पर साफ-सफाई नहीं होती है। हमेशा विभिन्न प्रकार की बीमारियों का जन्म होता है। इसीलिए हमें स्वच्छता का महत्व समझते हुए कहीं भी गंदगी नहीं फैलानी चाहिए।

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स्वच्छता के महत्व को देखते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी में पूरे देश में 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की। जिसका उद्देश देश में स्वच्छ भारत अभियान चलाकर स्वच्छ भारत का निर्माण करना है।

यदि इस अभियान में हर नागरिक का योगदान होता है तो निश्चित ही।भारत सरकार का अभियान सफल होगा। स्वच्छता का क्षेत्र व्यापक है, विस्तारित है।

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स्वछता
स्वछता

गंदगी के प्रकार, स्त्रोत एवं निवारण

1 – तरल गंदगी

तरल गंदगी से तात्पर्य घरों अथवा सार्वजनिक स्थलों से निकलने वाला गन्दा जल है, नालियों के अभाव में जोगा जो गांव की सड़कों, नालियों में बहता रहता है, जिससे हर समय पर गंदगी फैली रहती है। इसके अलावा सार्वजनिक जल स्त्रोतों जैसे – नल, कुंआ, तालाब से पानी की निकासी व्यवस्थित ना होने से कीचड़ जमी रहती है।

तरल गंदगी की समस्या के नियंत्रण तथा निवारण हेतु निम्न कदम उठाने आवश्यक हैं

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गांव में मौजूद नालियों की नियमित रुप साफ सफाई की जाये।

घरों की किचन से निष्कासित जल हेतु बंद नालियां जाये।

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सार्वजनिक जल स्त्रोतों के पास सोख्ता गड्ढों का निर्माण कर जमीन में उतारा जाये।

2 – ठोस गंदगी

इस से तात्पर्य ऐसी गंदगी से है, घरों से निकलने वाला कूड़ा-कचरा तथा अपशिष्ट पदार्थों को उनके स्त्रोत के आधार पर चार श्रेणियों अर्थात घरेलू अपशिष्ट, औद्योगिक एवं खनन अपशिष्ट, नगरपालिका अपशिष्ट एवं कृषि अपशिष्ट में विभक्त किया जा सकता है

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3 – घरेलू अपशिष्ट

घरों में प्रतिदिन सफाई के पश्चात गंदगी निकलती है जिससे धूल- मिट्टी के अतिरिक्त कागज, गत्ता, कपड़ा,  प्लास्टिक, लकड़ी, धातु के टुकड़े, सब्जियों एवं फलों के छिलके, सड़े-गले पदार्थ, सूखे फल, पत्तियां  आदि सम्मिलित होते हैं। ये सभी पदार्थ घरों से बाहर, सड़को अथवा निर्धारित स्थानों पर डाल दिए जाते हैं।  जहां इनके सड़ने से अनेक विषाणु उत्पन्न होते हैं जो न केवल प्रदूषण बल्कि अनेक लोगों का भी कारण हैं

4 – नगर पालिका अपशिष्ट

इससे तात्पर्य नगर में एकत्रित कूड़ा-करकट एवं गंदगी से है। इसमें घरेलू अपशिष्ट के अतिरिक्त मल मूत्र विभिन्न  संस्थानों, बाजारों, सड़कों से एकत्रित गंदगी, मृत जानवरों के अवशेष, मकानों के तोड़ने से निकले पदार्थ तथा वर्कशॉप आदि से फेंके गए पदार्थ सम्मिलित होते हैं। वास्तव में कस्बे की संपूर्ण गंदगी इसमें सम्मिलित हैं इसकी मात्रा नगर की जनसंख्या एवं विस्तार पर निर्भर है।

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5 – उद्धौगिक एवं खनन

अपशिस्ट उद्योगों से बड़ी मात्रा में कचरा एवं उपयोग में लाए गए पदार्थों के अपशिष्ट बाहर फेंके जाते हैं। इनमें धातु के टुकड़े, रासायनिक पदार्थ अनेक विषैले ज्वलनशील पदार्थ, तेलिये पदार्थ, अम्लीय उद्धौगिकतथा क्षारीय पदार्थ,जैव अपघटनशील पदार्थ,राख आदि सम्मिलित होते हैं। ये सभी पदार्थ पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं।

कृषि अपशिष्ट एवं खरपतवार / खेत कचरा – कृषि के उपरांत उसका बचा भूसा, घास-फूस, पत्तियां, नरवाई, डंठल आदि एक स्थान पर एकत्रित कर दिए जाते हैं या फैला दिए जाते हैं। इनमें गिरने से पानी सड़ने लगता है तथा जैविक क्रिया होने से प्रदूषण का कारण बन जाता हैअपशिष्ट पदार्थों का मानव व पर्यावरण पर प्रभाव- अपशिष्ट पदार्थों एकत्रित होने का प्रभाव पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर अत्यधिक हानिकारक होता है,

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जो निम्न प्रकार से प्रभाव डालते हैं।अपशिष्ट पदार्थ पर्यावरण अपकर्षण मैं अत्यधिक वृद्धि करते हैं क्योंकि इनसे भू -प्रदूषण के अतिरिक्त जल एवं वायु प्रदूषण में भी वृद्धि होती है। कूड़ा-करकट के सड़ने-गलने से अनेक प्रकार की गैस दुर्गंध निकलने से क्षेत्रीय वातावरण दूषित हो जाता है।

यदि इनमें रसायनों की मात्रा होती है तो यह और भी अधिक हानिकारक होती हैं। अपशिष्ट पदार्थ, जिनमें मल-जल एवं डिटर्जेंट मिश्रित होते हैं, जब नालियों से बहकर जल स्त्रोतों में पहुंच जाते हैं तो जल प्रदूषण के अतिरिक्त अनेक रोगों का भी कारण बनते हैं। रसायन मिश्रित जल एवं अन्य गंदगी रिसाव द्वारा भूमिगत जल तक पहुंच कर उसे भी प्रदूषित कर देते है।

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नियंत्रण तथा प्रबंधन

अपशिष्ट पदार्थों को नष्ट करना

अपशिष्ट पदार्थों को नष्ट कर उनके कुप्रभाव से पर्यावरण एवं मानव को बचाया जा सकता है। यहां नष्ट करने की एक सहज विधि भस्मीकरण है जिससे इसकी मात्रा 60 से 80% कम की जा सकती है। इसके लिए दहन भट्टी या विशाल दहन प्लांट का उपयोग किया जाना चाहिए किंतु इस क्रिया में वायु प्रदूषण न फैले, इसका ध्यान रखना चाहिए। रासायनिक क्रिया द्वारा भी अनेक अपशिष्ट पदार्थों को नष्ट किया जा सकता है अथवा उन्हें पुन: उपयोगी बनाया जा सकता है। 

स्वछता पर निबंध

अपशिष्ट पदार्थों से कंपोस्ट बनाना

नगरीय / गांवों के अपशिष्टों जैसे गाजर घास से भी खेतों के लिए बेहतर खाद बनाई जा सकती है। क्योंकि सब प्रकार की खरपतवार ऊर्जा होती है। इसमें उपस्थित ऊर्जा को हम बदल कर एक उपयोगी ऊर्जा में प्रयोग कर सकते हैं। भूमि में दबा, सड़ा-गला कर उत्तम उर्वरक बनाया जा सकता है, जो विशेष कर सब्जीयों के उत्पादन में अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होता है जैविक खेती की जा सकती है। किसी के मित्र खाद पर निर्भरता कम होग।

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विद्युत उत्पादन

अपशिष्ट पदार्थों से विद्युत उत्पादन का सफलतापूर्वक किया जा चुका है। दिशा में समुचित ध्यान देना आवश्यक है। इसी प्रकार इसमें मिश्रित कार्बनिक पदार्थों विशेष प्रक्रिया से गर्म कर मेथेन गैस प्राप्त की जा सकती है जिसका उपयोग इनाम के रूप में किया जाता है।

  1. कूड़े-करकट को अत्यधिक दबाव से ठोस  ईटों में बदला जा सकता है। 
  2. नगरों में मल-जल निकासी हेतु उचित सीवरेज व्यवस्था आवश्यक है।
  3. नगरी जल-मल को नगर से दूर गड्ढों में डाला जाए तथा वहां से शुद्धिकरण के पश्चात ही इसका सिंचाई आदि में उपयोग किया जाना चाहिए।
  4. उद्योगों को अपशिष्ट निस्तारण हेतु कानून रूप से बाध्य किया जाना आवश्यक है।  
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