महासागरों में दफन की जायेगी CO2,जिसके आधार पर पृथ्वी को ठण्डा बनाने की योजना,

महासागरों में दफन की जायेगी CO2,जिसके आधार पर पृथ्वी को ठण्डा बनाने की योजना,

वायुमडंल (Atmosphere) से ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के लिए जिम्मेदार बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) को कम करने के लिए वैज्ञानिक ने एक नया और कारगर उपाय खोज निकाला है।

उनकी इस योजना में वायुमंडल में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड की बहुत सारी मात्रा महासागरों की गहराइयों में पहुंचाई जायेगी। इस योजना के द्वारा पृथ्वी के तापमान को कम करने की एक छोटी सी कोशिश की जायेगी जिसके कारण पृथ्वी का तापमान कम हो सकेगा।

इसके द्वारा पृथ्वी प्रभावी तौर पर ठंडी हो सकेगी।

गहरे महासागरों में कार्बनडाइ ऑक्साइट (Carbon Dioxide) को पहुंचाने से वायुमडंल का तापमान कम हो सकता है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) ही की अधिकता दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग की मुख्य जड़ है।

महासागरों की गहराई के तल में बहुत सारी मात्रा CO2 पहुंचाने से एक बहुत बड़ी समस्या का समाधान हो सकता है। पादप प्लवकों के लिए कृत्रिम खाद का उपयोग करने से उनकी संख्या बढ़ सकती है जो यह काम कर सकते हैं। क्योंकि सूक्ष्मजीवी का विकास कृत्रिम खाद के उपयोग से बेहतरीन होता है।

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और ग्लोबल (Global warming ) वार्मिंग के कारण पृथ्वी पर बहुत सारी भयंकर भयंकार समस्या देखने को मिलने मिल रही हैं। लेकिन जब भी बात उसके निपटने के समाधान की होती है तो उसके लिए उत्तरदायी ग्रीनहाउस गैसों, उसमें विशेष तौर पर कार्बन डाइऑक्साइड प्रमुख रुप से सबसे अधिक उत्तरदायी मानी जाती है।

 इसीलिए दुनिया भर के सभी देशों को जीरो कार्बन नीति अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है। इसीलिए वैज्ञानिकों ने अपने शोध से भी वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड  को कम करने के प्रयासों पर अधिक जोर देना बहुत ही आवश्यक हैं। इसी के लिए वैज्ञानिकों ने कार्बन डाइऑक्साइड को गहरे समुद्र में दफनाने का एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया है।

गहरे महासागरों में

वैज्ञानिक कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से कम करने के बहुत से शोध कार्यों से तरीकों को खोजने के लिए बहुत प्रयास कर रहे रहे हैं इसके द्वारा महासागरों को एक तरह की खाद प्रदान करने जैसी तकनीकी योजना विकसित करना शामिल है।

जिससे कार्बन डाइऑक्साइड भारी मात्रा को कम से कम किया जा सकता है और पृथ्वी को ठंडा बनाया जा सकता है। अमेरिका के ऊर्जा विभाग के पेसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लैबोरेटरी के अर्थ साइंटिस्ट माइकल होचेला का कहना है कि बढ़ते पृथ्वी तापमान को रोकने के लिए हमें कार्बनडाइ ऑक्साइड के स्तरों को वैश्विक स्तर पर मिलकर कम करना होगा।

सभी विकल्पों, जिसमें महासागरों को कार्बन डाइऑक्साइड के भंडार भी शामिल है, पर बहुत से शोध करने के बाद हमें पृथ्वी  को ठंडा करने का सबसे अच्छा तकनीकी तरीका मिल गया है।

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प्राकृतिक रूप से 

ऐसा नहीं है कि महासागरों की गहराइयों में कार्बन डाइऑक्साइड जा नहीं सकती है। बल्कि प्राकृतिक रूप से ऐसा होता है कि महासागरों के निचले तल में कार्बनडाई ऑक्साइड पाई भी जाती है। महासागरों की सतह पर रहने वाले कई तरह के सूक्ष्मजीवी जिन्हें पादप प्लवक के नाम से जाना जाता है।

समुद्र की सतह पर रहने बाले सूक्ष्मजीवी ही वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं और ये वायुमंडल से अवशोषित कार्बनडाइ ऑक्साइड को समुद्र की गहराई में ले जाते है। गहरे समुद्र में कार्बनडाइ ऑक्साइड पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निभाते हैं।

इनकी सहायता लेकर हवा में उपस्थित कार्बनडाइ ऑक्साइड काफी मात्रा को कम किया जा सकता है। महासागरों की सतह पर बहुत सारे सूक्ष्मजीवी रहते है। जो जीवन के लिये काफी मददगार सावित हो सकते है।

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खनिजों की कमी

सूक्ष्मजीवों को अपने पोषण के लिए लोहे जैसे खनिजों की बहुत जरूरत होती है। लेकिन समुद्र के पानी की सतह पर तैरते हुए जीवों के लिए यह बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध हो पाता है, इसी वजह से पदाप प्लवक (सूक्ष्मजीवी) के विकसित होना बहुत कम हो जाता है।

इसलिए जिस प्रकार खाद का उपयोग कर पौधों के प्रकाश संश्लेषण करने वाले जीवों का निर्माण किया जाता है, उसी तरह महासागरों में भी ऐसा किया जाना संभव हो सकता है। सूक्ष्मजीवियों के जीवन के खनिज की निश्चित मात्रा नहीं मिल पाती है जिसके कारण उनका विकास सही से नहीं हो पाता है।

व्हेलों की कमी के कारण

एक समय में व्हेल बहुत सारा प्राकृतिक महासागरीय खाद अपशिष्ट के रुप में निकालती थी जो कि सूक्ष्मजीवी (प्लवको) के भोजन के रूप में उपयोग आता है। लेकिन व्हेलों की संख्या कम होने से पहले पादप प्लवक 20 लाख टन का कार्बन डाइऑक्साइड हर साल इस प्रक्रिया के द्वारा वायुमंडल से कम किया करते थे।

जो केवल अब लगभग 2 लाख टन तक रह गया है। वैज्ञानिकों ने ऐसे अतिसूक्ष्म कणों खोज निकाला है जिसकी सहायता से महासागरों की सतह पर रह रहे सूक्ष्मजीवीयों (पादप प्लवकों ) के विकास में काफी मददगार सावित हो सकते है।

कृत्रिम खाद का उपयोग करके 

कृत्रिम खाद को डालने एवं इसके उपयोग से इन सूक्ष्मजीवों का विकास होना तेज हो जायेगा जिससे उनके संख्या बृद्धि होगी और उनके नष्ट एवं मरने के साथ ही हवा से कार्बनडाइ ऑक्साइड और अधिक मात्रा में महासागरों की गहराई में जाने लगेगी।

 ऐसे मे बहुत अधिक मात्रा में कार्बनडाइ ऑक्साइड महासागरों के निछले तल पर जाने लगेगी जो अधिकांशतः मानवी गतिविधियों द्वारा जिसका अधिक मात्रा में उत्सर्जन हुआ है। इस तरह से हम इन सूक्ष्मजीवीयों की मदद से कार्बनडाइ ऑक्साइड की काफी मात्रा को को कम कर सकते हैं।

मानव गतिविधियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया गया जिसके कारण कार्बनडाइ ऑक्साइड का चक्र हमारी गतिविधियों द्वारा तोड़ने से पैदा हुई है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि यहां पर ऐसे पोषकतत्वों की जरूरत है जो पानी की सतह पर लंबे समय तक टिक सकें जैसे आयरन ऑक्साइड जैसे नैनोपार्टिकल प्राकृतिक तरीके से सूक्ष्मजीवियों की मदद से खाद का काम करते हैं।

 लीड्स यूनिवर्सिटी की बोयोजियोकैमिस्ट पेमैन बाबाखानी और उनके साथियों ने 123 शोध अध्ययनों की समीक्षा कर कुछ अतिसूक्ष्म कणों को खोज निकाला है जो प्राकृतिक रूप से मिलने वाले इन नैनोपार्टिकल का सूक्ष्मजीवीयों की मदद से खाद के रुप में काम कर सकते हैं।