भारतीय टेलीस्कोप: ‘SARAS’ ने कैसे खोजे ब्रह्माण्ड की शुरुआती गैलेक्सी रेडीयों तरंगों के संकेत?

INDIAN TELESCOPE SARAS, भारतीय टेलीस्कोप: ‘SARAS’ ने कैसे खोजे ब्रह्माण्ड की शुरुआती गैलेक्सी रेडीयों तरंगों के संकेत?

भारतीय टेलीस्कोप (Indian Telescope) SARAS का उपयोग कर वैज्ञानिकों ने नई पद्धति से शुरुआती ब्रह्माण्ड (Universe) की गैलेक्सी (Galaxies) के अध्ययन करने का तरीका खोज निकाला है और उन्होंने इस सारस टेलस्कोप के द्वारा शुरुआती ब्राह्मण्ड की गैलेक्सी के भार, चमक, और ऊर्जा आदि के बारे में जानकारी प्राप्त कर पता लगाया है कि उस दौर के समय में गैलेक्सी बहुत ज्यादा एक्स रे और शक्तिशाली रेडियो उत्सर्जन करती थीं।

SARAS

शुरुआती ब्रह्माण्ड (Universe) में बनी गैलेक्सी और तारों के संकेत रेडियो तरंगों के संकेतों के रूप में पृथ्वी पर आते हैं। NASA ESA T. Brown S. Casertano and J. Anderson) पृथ्वी पर शुरुआती ब्रह्माण्ड की गैलेक्सी के संकेत बहुत ही धुंधले एवं धब्बे आते हैं। इनका अध्ययन करना बहुत ही कठिन कार्य प्रतीत होता है।

भारत के SARAS 3 टेलीस्कोप से वैज्ञानिकों ने शुरुआती गैलेक्सी की नई जानकारी प्राप्त कर ली है।

पिछले कुछ सालों में हमारे खगोलविद शुरुआती ब्रह्माण्ड (Early Universe) के मिलने वाले रेडियों तरंगों के संकेत को पकड़ कर उनका अध्ययन करने लगे हैं।

इसके लिए वे रेडियो तरंगों के संकेतों का सहारा लेते हैं जो अरबों सालों का सफर कर पृथ्वी का सफर करते करते कमजोर स्थिति में हो जाती हैं। दुनिया के शोधकर्ताओं का समूह बिग बैंग के बाद के 20 करोड़ वर्ष के बाद, जिसे वैज्ञानिक कॉस्मिक डॉन  (Cosmic Dawn) यानि खगोलीय असुबह कहते हैं, रेडीयों तरंगों के संकेतों अध्ययन कर रहा है।

इसमें भारत के SARAS टेलीस्कोप (SARAS 3 Telescope of India) के जरिए उस दौर की विभिन्न गैलेक्सी के बारे में नये सिरे के शोध तरीके से जानकारी प्राप्त की है।

किसने किया नया शोध

SARAS 3 यानी शेप्ड एंटीना मेजरमेंट ऑफ द बैकग्राउंड रेडियो स्पैक्ट्रम -3 भारत में ही डिजाइन और विकसित किया गया रेडियो टेलीस्कोप है जो उत्तरी कर्नाटक में दांडी गानाहाली झील और शरावती में स्थापित किया गया।

 इस शोध अध्ययन में ऑस्ट्रेलिया के कॉमनवेल्थ साइन टिफिक एन्ड इंडस्ट्रियल रिसर्च आर्गेनाइजैशन (CSIRO) बेंगलुरू के रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI),के वैज्ञानिकों ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और तेल अवीव यूनिवर्सिटी के सहयोगी भी इसमें शामिल थे।

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कैसे होता है अध्ययन

नेचर एस्ट्रनॉमी जर्नल में प्रकाशित विस्तृत अध्ययन ने गैलेक्सी की पहली पीढ़ी के भार, चमक और ऊर्जा निष्पाद, के बारे में अधिक जानकारी प्रदान की है। शुरुआती ब्रह्माण्ड गैलेक्सी की विशेषताओं को जानने के लिए वैज्ञानिक सामान्यतः शुरुआती ब्रह्माण्ड के हाइड्रोजन परमाणु द्वारा पैदा किये 21 सेंटीमीटर वाली रेखा के, रेडियो तरंगों के संकेतों का अध्ययन करते हैं।

भारतीय टेलीस्कोप: 'SARAS' ने कैसे खोजे ब्रह्माण्ड की शुरुआती गैलेक्सी रेडीयों तरंगों के संकेत?
भारतीय टेलीस्कोप: ‘SARAS’ ने कैसे खोजे ब्रह्माण्ड की शुरुआती गैलेक्सी रेडीयों तरंगों के संकेत?

अध्ययन का नया तरीका

यह रेडीयों तरंग संकेत सामान्तः गैलेक्सी के आसपास करीब लगभग 1420 मेगाहर्ट्ज की आवृत्ति से उत्सर्जित होता है लेकिन ये रेडीयों तरंग संकेत बहुत ही धुंधले धब्बेदार होते हैं और उनकी पहचान करना शक्तिशाली टेलीस्कोप के लिए भी बहुत कठिन  काम होता है।

लेकिन इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पहली बार दर्शया है कि शुरुआती ब्रह्माण्ड की 21 सेंटीमीटर लाइन को पहचाने बिना ही शुरुआती समय दौर की उन ब्रह्मण्ड गैलेक्सी का गहन अध्ययन  किया जा सकता है।

शुरुआती ब्रह्माण्ड (Universe)गैलैंक्सीस(galaxies) की जानकारी रेडियो तरंग संकेत से प्राप्त होती है जिसके लिए रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग किया जाता है।

पहली बार ऐसे नतीजे

आरआरआई के पूर्व निदेशक और शोधपत्र के लेखक सुब्रमण्यम ने बताया कि SARAS 3 टेलीस्कोप के द्वारा सुपरमासिव ब्लैक होल की शक्ति से संचालित शुरुआती ब्रह्मण्ड गैलेक्सी की विशेषताओं के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है।

जो बड़ी रेडियो तरंगे उत्सर्जित करने का काम करती थीं। यह पहली बार है कि औसत 21- सेंटीमीटर लाइन वाले रेडियो तरंगों के अध्ययन से इस तरह के परिणाम प्राप्त किये जा सके हैं।

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SARAS 2 और SARAS 3 में अंतर 

जहां SARAS 2 ने पहले शुरुआती तारों और गैलेक्सी की विशेषताओं की महत्वपूर्ण जानकारी दी थी, SARAS 3 ने एक कदम आगे जाकर कॉस्मिक डॉन की समझ को आगे बढ़ाया है।

 उसके द्वारा प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि शुरुआती ब्रह्माण्ड गैलेक्सी का 3 प्रतिशत से भी कम का गैसीय पदार्थ तारों में बदल चुका था और शुरुआती  ब्रह्माण्ड गैलेक्सी एक्स रे और रेडियो तरंगों के उत्सर्जन के मामले में बहुत ही चमकदार हुआ करती थीं।

बिग बैंग के बाद से ब्रह्माण्ड की शुरुआती ब्रह्मण्ड गैलैक्सी (Galaxy) में बहुत कम गैसें तारों में बदल गई है।

शक्तिशाली उत्सर्जन

इन्हीं शक्तिशाली उत्सर्जनों से इन शुरुआती ब्रह्मण्ड गैलेक्सी के अंदर और उनके आसपास का पदार्थ गर्म हो गया था। जिसके कारण कई रेडियों तरंगे गैसों में बदल गई है इनके द्वारा प्राप्त इन्हीं आकड़ों की वजह से अब वैज्ञानिक ब्रह्मण्ड गैलेक्सी के भार की जानकारी प्राप्त करने में सक्षम हो गये हैं।

 इसके साथ ही वे ब्रह्मण्ड गैलेक्सी के द्वारा उत्सर्जित रेडियो तरंगे, एक्स रे और पराबैंगनी तरंगों  के ऊर्जा के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर पा रहे हैं।

वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में बनाया ब्लैक होल, और जैसे ही बनकर तैयार हुआ वैसे ही वह चमकने लगा।

इतना ही नहीं वे फिनो मिनो लॉजिकल प्रतिमान का उपयोग कर वे रेडियो तरंगों के अतिरिक्त विकिरण की ऊपरी सीमा का भी सही निर्धारण करने में जानकारी प्राप्त कर पा रहे हैं।

 बैज्ञानिकों का कहना है कि यह शौधों के दशक का उनका शुरुआती कदम है जिससे पता लगाया जा सकता है कि कैसे ब्रह्माण्ड खालीपन और अंधेरे से तारों, गैलेक्सी और अन्य खगलोयी पिंडों का एक जटिल संसार बन गया जिसे हम आज पृथ्वी पर से देख पाते हैं।