कुपोषण पर निबंध 2023 हमारे दैनिक जीवन में शरीर की आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए पोषण की आवश्यकता होती है। जिसके द्वारा ही हम दैनिक नियत रूप से दैनिक क्रियाओं कर पाते हैं। दैनिक पोषण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार पोषक तत्वों को पोषण में शामिल करना अति आवश्यक है।
दैनिक पोषण आवश्यक जरूरतों को करने के लिए प्रोटीन, बसा, कर्वोज, विटामिनों और खनिज तत्वों आदि को आवश्यकता से कम या अधिक मात्रा में लेना ही कुपोषण कहलाता है। अल्पपोषण या अतिपोषण दोनों रूप में कुपोषण हो सकता है।
कुपोषण शरीर को सही मात्रा में कुछ आवश्यक पोषक तत्व न मिलने और उपयोग नहीं करने के कारण होता है। अल्पपोषण हमारे शरीर में उपस्थित पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है। और अतिपोषण अत्याधिक खाने से अधिक वसायुक्त भोजन खाने से अति कुपोषण होता है।
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कुपोषण पर निबंध 2023
जो कोई भी बच्चा पर्याप्त मात्रा में आहार नहीं लेता है तो जिसके कारण बच्चे का शरीर सामान्य रुप से विकसित नहीं हो पाता है और ना ही अपना कोई भी कार्य सही एवं सुचारू रूप से नहीं कर पाता हैं। जिससे बच्चे का शरीर कमजोर हो जाता है और उसमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है परिणाम स्वरूप उसका शरीर विभिन्न प्रकार की बीमारियों से लडने में अक्षम होता है।
जिसके कारण वह बच्चा विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित रहता है। बीमारी की अवस्थाओं में भोजन का अवशोषण तथा उसके पचने में कठिनाई होती है कभी-कभी किसी परिस्थिति में पोषक तत्वों की मांग बढ़ जाती है अथवा पोषक तत्व विसर्जित हो जाती हैं या पोषक तत्व शरीर में नष्ट हो जाते हैं, बच्चे की भूख कम हो जाती है इस प्रकार से यह चक्र चलता रहता हैं।
कुपोषण एवं स्वास्थ्य समस्याएं एक दूसरे से संबंधित है बच्चे के जीवन के लिए पहले 2 वर्ष बहुत ही महत्वपूर्ण होते है। विशेषकर पहला वर्ष बच्चे के शरीर के स्वास्थ्य के लिए, वृद्धि एवं विकास की बुनियाद इसी अवधि में पडती है।
बच्चे के जीवन के किसी भी दौर के मुकाबले इस उम्र में वे सबसे जल्दी बढ़ते हैं इसलिए इन्हें इस समय अधिक पोस्टिक आहार और स्वास्थ्य देखभाल की अच्छी सुविधाओं की आवश्यकता होती है। यही समय बच्चे की जीवन का आधार होता है।

इस समय बच्चे के पोषण का ध्यान देना बहुत ही आवश्यक है बच्चे की पोषण में संतुलित आहार शामिल होना चाहिए एवं संतुलित आहार में सभी प्रकार के पोषक तत्वों का समावेश होता है। बच्चे के शरीर को स्वास्थ्य बनाता है। जिससे और बच्चा ताकतवर बनता है।
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कुपोषण के प्रकार
कुपोषण षण तीन प्रकार का होता है जिनकी जानकारी होने पर कुपोषण को आसानी से पहचाना जा सकता है।
कम वजन under weight (उम्र के अनुसार कम वजन )
जब बच्चे का वजन उसकी उम्र तक लिंग के अनुसार मानक वजन की तुलना में कम हो तो ऐसी स्थिति देखी जा सकती है।
ठिगनापन stunting ( अवरूद्ध विकास )
ठिगना बच्चा वह है जिसकी लंबाई/ ऊंचाई उसकी उम्र व लिंग के मानक के अनुसार कम हो।
दुबलापन wasting (अपक्षय)
मांसपेशियों का क्षय यह ऐसी अवस्था को दर्शाता है जिसमें बच्चों का वजन उसकी उम्र के अनुसार मानक लंबाई ऊंचाई से काफी कम होता है।
वेस्टिंग या अपक्षय को दो भागों में विभक्त किया गया है –
अति गंभीर कुपोषण
इस श्रेणी में वे बच्चे आते हैं जिनका लंबाई के अनुसार वजन बहुत ही कम होता है या ऊपरी मध्य बाहं की गोलाई 11.5 सेमी से कम होती है या दोनों पांव में एडिमा होता है।
माध्यम कुपोषण
ऐसे बच्चे जिनकी लंबाई के अनुसार वजन नियत मानक से कम होता है या ऊपर मध्य बाहं की गोलाई 11.5 से 12.4 सेमी तक होती है।, जिसे mid arm measurement टेप द्वारा मापा जा सकता है।
कुपोषण के कारण हुआ एडिमा या सूजन
शरीर के निचले भाग पैरों के पंजे की ऊपरी सतह से शुरू होता है और दोनों तरफ होता है बढ़ती गंभीरता के साथ यह पैर, हाथ शरीर के ऊपरी अंग तथा चेहरे तक फेल जाता है।
कुपोषण के प्रभाव
कुपोषण एक व्यापक समस्या है जिसके कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
तत्काल दिखाई देने वाले प्रभाव
- बार बार बीमार होना।
- कमजोरी, शारीरिक मानसिक विकास में देरी।
- सतत चिड़चिड़ापन।
- पाचन शक्ति में कमजोरी।
- आयु की तुलना में भार कम रहना।
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दीघ्रकालीन प्रभाव
- आयु के हिसाब से कद नहीं बढ़ना या बौना रह जाना, गर्भावस्था के दौरान आयरन की कमी से गर्भस्थ शिशु के मानसिक विकास मे कभी ना ठीक हो सकने वाली बीमारी हो जाना।
- बालिकाओं का बौनापन गर्भधारण में उल्टा प्रभाव डालता है जिससे अगली पीढ़ी द्वारा कम वजन वाले शिशुयों का जन्म होता है।
- गर्भावस्था में विटामिन-ए की कमी से नवजात शिशु में विटामिन ए के भंडार मे कमी तथा माता के दूध मे भी विटामिन ए की मात्रा की कमी।
- आयोडीन की कमी के कारण गर्भावस्था के दौरान कम वजन के बच्चे का जन्म, मृत बच्चे का जन्म, बार बार गर्भपात होना तथा कम बुद्धि वाले बच्चे का जन्म होना।
- कुपोषण के कारण अजन्मे दिघ्रकालिक बीमारियां जैसे दिल की बीमारी एवं मधुमेह का खतरा संभावना अधिक हो जाती है।
- कुपोषण के कारण बच्चे समुचित विकास प्रभावित होता हैं जैसे सीखने की कमजोर क्षमता बच्चे के अंदर प्रोत्साहन तथा उत्सुकता की कमी खेलकूद एवं अन्य क्रियाओं में भाग न लेना, लोगो एवं वातावरण से दूर रहना।
- 5 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों में कुपोषण से मृत्यु होने की संभावना अधिक हो जाती या रहती है।
- कुपोषण के कारण अध्यन करने में कमजोर होता है और कमजोर सामान्य स्वास्थ्य जो कमजोर कार्य क्षमता में दिखता है जिसके कारण आय उपार्जन कम होता है।
- कुपोषण के कारण मातृ मृत्यु तथा शिशु मृत्यु की संभावना अधिक हो जाती है।
- कुपोषण के कारण मानसिक मानसिक विकास में कई प्रकार की विकृतियां पैदा हो जाती है। जिसके कारण बच्चे के मानसिक विकास नहीं हो पाता है।
- कुपोषण के कारण बच्चों की आंखों की रोशनी कम होना तथा आंखों से संबंधित कई कई प्रकार की बीमारियों होने की संभावना बढ़ जाना या ग्रसित हो जाना।
- कुपोषण के कारण गर्भावस्था के दौरान थकावट, भूख में कमी एवं खून की कमी से कम वजन के बच्चे का जन्म होना।
मां और बच्चे का पोषण एक-दूसरे से सीधे तौर पर जुड़ा होता है। कुपोषण अधिकांश मां के गर्भ धारण से आरंभ हो जाता है। हमेशा किसी मां को गर्भ धारण करने से पूर्व से पोषण से युक्त सभी प्रकार का आहार का सेवन करना चाहिए या संतुलित आहार को लेना चाहिए। क्योंकि संतुलित आहार में सभी प्रकार के पोषक तत्वों का समावेश होता है। जिसके द्वारा माता गर्भावस्था में स्वस्थ रहेगी और आगे चलकर एक स्वास्थ्य शिशु को जन्म देगी और स्वस्थ जीवन यापन कर सकें।