महावीर स्वामी का जीवन परिचय, स्वामी महावीर जयंती, दोस्तों आज हम बात करेंगे स्वामी महावीर के बारे मे, उनके जीवन के बारे मे, जानेंगे.
जन्म
श्री महावीर जी का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले 540 ईसा पूर्व से 599 ईसा पूर्व में कुंडलपुर वैशाली में हुआ था। इनका वंश का नाम ज्ञातक क्षत्रिय वंश है। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला है। और इनके भाई का नाम नंदी वर्धन है। हिंसा, पशु बलि, जात पात का भेदभाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में महावीर का जन्म हुआ।
महावीर के जन्म के बाद राज्य में सुख एवं समृद्धि काफी वृद्धि हुई थी। जिसके कारण इनका नाम वर्धमान रखा गया। महावीर जी जैन धर्म के 24 वे एवं अंतिम तीर्थ कर थे।
ना म | स्वामी महावीर |
जन्म | महावीर जी का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले 540 ईसा पूर्व से 599 ईसा पूर्व में कुंडलपुर वैशाली |
मोक्ष | 468 ईसवी में 72 की वर्ष की उम्र में पावापुरी में मोक्ष की प्राप्ति हुई। |
पिता का नाम | सिद्धार्थ |
माता का | त्रिशला |
भाई का नाम | नंदी वर्धन |
महावीर का पुराना नाम | वीर, अतिवीर,वर्धमान,जैनेंद्र एवं सन्मति |
नाम
महावीर जी को कई प्रकार के नाम से भी जाना जाता है जिनमें महावीर को वीर, अतिवीर,वर्धमान,जैनेंद्र एवं सन्मति आदि नाम से जाना जाता है। महावीर स्वामी जी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था।
महावीर अनेक प्रकार के नाम पीछे अनेक प्रकार की कथा जुडी है। कि ऐसा कहा जाता है कि महावीर के जन्म के बाद राज्य में वृद्धि एवं तरक्की हुई थी इस कारण उनका नाम वर्धमान रखा गया था।
महावीर जी बचपन से ही साहसी, निडर एवं बलशाली थे जिसके कारण उन्हें महावीर के नाम से जाना जाने लगा।
महावीर जी ने अपनी सभी इच्छाओं एवं इन्द्रियों विजय प्राप्त कर ली थी जिसके कारण जैनेन्द्र का नाम दिया गया। महावीर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे।
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विवाह
महावीर जी को विवाह संबंधी किसी भी प्रकार की रुचि नहीं थी। वे शादी नहीं करना चाहते थे। महावीर जी को बचपन से ही ब्रह्मचर्या में रुचि थी। उनको सांसारिक भोगों में किसी प्रकार की रुचि नहीं थी उनके माता-पिता उनकी शादी करवाना चाहते थे। जैन धर्म की दिगंबर परंपरा के अनुसार महावीर जी का विवाह नहीं हुआ है अर्थात विवाह के लिए मना कर दिया था
परंतु जैन धर्म की श्वेतांबर परंपरा के अनुसार इनका विवाह बसंतपुर के महा सामंत समरवीर की पुत्री यशोदा नाम की सुकन्या से हुआ था। और आगे चलकर एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम प्रियदर्शिनी रखा गया। महावीर जी ने अपनी पुत्री के युवा होने पर जमाली नाम के राजकुमार के साथ विवाह किया।

महावीर जी का सन्यासी जीवन
महावीर जी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के तेजस्वी एवं दूरदर्शी बालक थे। उनका जन्म राज परिवार में होने से भी उनमें सांसारिक सुखों के प्रति किसी भी प्रकार का लगाव नहीं था। महावीर जी के माता पिता की मृत्यु के बाद उनके मन में सन्यासी जीवन की ओर बढ़ने की इच्छा हुई थी और भी सन्यास को ग्रहण करना चाहते थे।
लेकिन अपने भाई नंदीवर्धन के कहने पर कुछ समय लगभग 2 वर्ष के लिए रुक गए थे। और फिर 30 साल की उम्र में सांसारिक लोभ मोह माया त्याग कर घर छोड़ने का फैसला लिया तथा सन्यास ग्रहण कर लिया और सन्यासी की तरह जीवन यापन करने लगे। महावीर जी ने वन में लगभग 12 वर्ष कठोर तप किया ज्ञान की प्राप्ति की। इन्हे ज्ञान की प्राप्ति रिजूपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे हुई।
महावीर जी विश्व के उन महात्माओं में से एक थे जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए राज पाट का छोड़कर तप एवं त्याग का मार्ग अपनाया। जिस तरह राज महल में रहने वाले महावीर जी ने अपने सुखों को त्याग कर सत्य की खोज की और परम ज्ञान की प्राप्ति की। महावीर जी का जन्म सभी के लिए प्नेरणा दायक है।
महावीर जी के विषय में धीरे-धीरे लोग जानने लगे अर्थात महावीर जी की ख्वाती धीरे-धीरे सारे जगत में फैलने लगी। और देखते देखते राजा महाराजा महावीर जी के अनुयाई बन गये जिनमें कोणक, बिंबिसार एवं चेटक प्रमुख थे।महावीर जी जगत में केल्विन के नाम से जाने लगे अर्थात केल्विन के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
उन्होंने अपने उपदेशों में जीव धारियों के प्रति दया भाव, जीवो के प्रति हिंसा ना करने एवं लोगों में किसी भी प्रकार का आपसी भेदभाव ना हो ना ही किसी प्रकार की हिंसा हो लोग आपस में मिलजुल कर रहे, सत्य,अहिंसा का मार्ग के लिए प्रेरित किया।
जैन धर्म के 24 तीर्थंकर
- ऋषभदेव
- अजीत नाथ
- संभवनाथ
- अभिनंदन
- सुमतिनाथ
- पध्य प्रभु
- सुपाश्वरनाथ
- चंद्रप्रभु
- सुविधि
- शीतल
- श्रेयांश
- वासुपूज्य
- विमल
- अनंत
- धर्म
- शांति
- कुंथ
- अर
- मल्लि
- मुनी सुव्रत
- नेमिनाथ
- अरिष्ठनेमी
- पार्श्वनाथ
- महावीर
महावीर जी जैन धर्म के 24 वे एवं अंतिम तीर्थकर थे। इन्होंने समाज कल्याण के लिए अनेक प्रयास किए एवं समाज कल्याण के हित के लिए विभिन्न प्रकार उपदेश दिये। जिनमें सत्य, अहिंसा से संबंधित लोगों को उपदेश देकर प्रेरित किया।
इसमें सत्य से अभिप्राय है कि मनुष्य को सत्य बोलना चाहिए किसी भी स्थिति में झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ बोलना मानव धर्म का सबसे बड़ा पाप है। और अहिंसा से अभिप्राय है मनुष्य को जीव प्राणियों के साथ मारपीट नहीं करनी चाहिए। उनके साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करना चाहिए और उनके साथ किसी भी प्रकार का हिंसात्मक व्यवहार ना करें।
महावीर के प्रमुख 11 गणधर
- श्री इंद्रभूति
- श्री अग्निभूति
- श्री वायुभूति
- श्री व्यक्त स्वामी जी
- श्री सुधर्मा स्वामी जी
- श्री मंडितपुत्र जी
- श्री मौर्यपुत्र जी
- श्री अकम्पित जी
- श्री अचलभ्राता जी
- श्री मोतार्य जी
- श्री प्रभास जी
महावीर की शिक्षाएं
त्रिरत्न
सम्यक दर्शन
तीर्थ कर द्वारा दिए गए उपदेशों कथनों एवं वचनों पूर्ण रुप से विश्वास करना और ना की किसी भी प्रकार की अविश्वास की भावना रखना।
सम्यक ज्ञान
सही ज्ञान, सत्य और असत्य, उचित और अनुचित के बीच अंतर जान लेना सम्यक ज्ञान कहलाता है। यह ज्ञान विभिन्न प्रकार का होता है जिनमें केवाल्य ज्ञान, श्रुति ज्ञान, अवधी ज्ञान, मन पर्याय ज्ञान एवं मति ज्ञान आदि।
सम्यक चरित्र
सही आचरण – किसी भी व्यक्ति के प्रति सही आचरण करना।
पंच महाव्रत
सत्य,अहिंसा,अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचार्य आदि पंच महाव्रत है।
सत्य
सत्य वचनों का प्रयोग करना और कभी भी किसी भी स्थिति में गलत असत्य वचनों का प्रयोग ना करना।
अहिंसा
मन, कर्म,वचन से किसी के भी प्रति हिंसा ना करना एवं किसी के प्रति दुर्व्यवहार ना करना और सभी के प्रति मैत्रीपूर्ण व्यवहार बनाए रखना।
अस्तेव
किसी की वस्तु का प्रयोग उसकी अनुमति के बिना ना करना अगर किसी की वस्तु का प्रयोग उसकी अनुमति के बिना करते हैं तो महावीर जी ने उसे चोरी के समान बताया है।
अपरिग्रह
इसकी के अंतर्गत किसी भी चीज का संगृह नहीं करना चाहिए। आपको अधिक से अधिक धन संपत्ति का संग्रह नहीं करना चाहिए क्योंकि यह समाज के सर्व कल्याण के लिए उपयुक्त है।
ब्रह्मचार्य
इस महाव्रत को महावीर द्वार जोड़ा गया है। इसके अंतर्गत मनुष्य को गृहस्थ जीवन का त्याग करना पड़ता है और सन्यास को ग्रहण कर लेता है।
पांच समिति
इर्या, एषणा, भाषा, आदान निक्षेप, उत्सर्ग समिति आदि प्रमुख पांच समिति हैं।
मोक्ष
महावीर जी को 468 ईसवी में 72 की वर्ष की उम्र में पावापुरी में मोक्ष की प्राप्ति हुई। जहां पर महावीर जी को मोक्ष प्राप्त हुआ था वहां पर पूजा स्थल के रूप में पूजा जाने लगा। महावीर के मोक्ष प्राप्ति के 200 वर्ष बाद जैन धर्म में दिगंबर संप्रदाय एवं स्वेतांबर संप्रदाय की स्थापना हुई। दिगंबर संप्रदाय के अंतर्गत वस्त्रों का पूर्ण रुप से त्याग कर दिया जाता है। जबकि श्वेतांबर संप्रदाय में श्वेत वस्त्रों का धारण किया जाता है।