जगदीश चंद्र बसु बर्थडे 

जगदीश चंद्र बसु बर्थडे, दुनिया को भारत के विज्ञान से परिचित कराया था जगदीश चंद्र बसु ने

जगदीश चंद्र बसु बर्थडे -दुनिया को भारत के विज्ञान बारे में परिचित कराया था बसु ने

भारत (India) में आधुनिक विज्ञान (Science) क्षमता का पूरी दुनिया से सबसे पहले परिचय कराने वाले जगदीश चंद्र बसु (Jagadish Chandra Bose) ऐसे पहले भारतीय ब्यक्ति थे।

उन्होंने भौतकी,जीव विज्ञान,वनस्पति विज्ञान, जीव विज्ञान आदि जैसे विषयों को भारतीय संस्कृति से  जोड़ने का काम किया और इसके साथ ही विज्ञान साहित्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

जिससे देश के आम लोग और स्थानीय लोग विज्ञान के सम्बन्ध में आसानी से परिचित हो सके और सार योग्य बना सके। 30 नवंबर को उनका जन्मदिन है। जगदीश चंद्र बसु (Jagadish Chandra Bose) ने भौतिकी और जीवविज्ञान में कई अहम महत्वपूर्ण शोध किए थे। 

जगदीश चंद्र बोस वैज्ञानिक होने के साथ-साथ बहुत अच्छे और लोकप्रिय शिक्षक भी थे। जगदीश चंद्र बोस ने कई प्रकार के यंत्रों का निर्माण किया था। जिनमें से कुछ यंत्रो का प्रयोग आधुनिक रेडियो संचार को एक दिशा प्रदान करने काम में किया जाता है ।

उन्होंने वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध करके दिखाया था कि पेड़ पौधों में भी जान होती है। दुनिया भर में ऐसे बहुत ही कम वैज्ञानिक, या शायद एक के अतिरिक्त कोई भी नहीं, हुये हैं जो भौतिकी और जीविज्ञान (Biology) में एक साथ निपुण और हों।

 जिनमें से जगदीश चन्द्र बसु एक थे और जिन्होंने अपने अपने समय में विज्ञान की बड़ी-बड़ी खोजें की है। लेकिन 19वीं सदी के अंत में और 20 सदी के शुरू में भारत में ऐसे ही एक वैज्ञानिक हुए थे जिनका नाम जगदीश चंद्र बसु ((Jagadish Chandra Bose)था।

 जगदीश चंद्र बसु ने जीव विज्ञान, भौतिकी, वनस्पति शास्त्र आदि विषयों के सम्बन्ध में अपनी शोधों और प्रयोगों से पूरी दुनिया को आश्चर्य करके भारतीय वैज्ञानिक (Indian Science) क्षमता से दुनिया को परिचित कराया था।

पिता के स्कूल में पढ़ाई की शुरुआत

जगदीश चंद्र बसु का ब्रिटिश शासन के पूर्वी बंगाल के मेमनसिंह के ररौली गांव में उनका जन्म 30 नवंबर, 1858 को हुआ था जो अब वर्तमान में बांग्लादेश में है। उनके पिता का नाम भगवान चन्द्र बसु था। उनके पिताजी ब्रिटिश शासन में कई जगहों पर डिप्टी मैजिस्ट्रेट या सहायक कमिश्नर और ब्रह्म समाज के प्रसिद्ध नेता थे।

jagdish chandra bsu
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 उन्होंने अपने पिता द्वारा स्थापित गांव के ही एक स्कूल में ही अपनी पढ़ाई की शुरुआत की थी। उस स्कूल को उनके पिता द्वारा बनवाया गया था। स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने कलकत्ता के सेन्ट जेवियर कॉलेज से स्नातक की डिग्री की उपाधि प्राप्त की थी।

पहले चिकित्सा और फिर भौतिकी की ओर

उन्होंने कलकत्ता के सेंट जेवियर कॉलेज से स्नातक पूरी करने बाद में उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय में चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त की , फिर इसके बाद कैम्ब्रिज कॉलेज में प्रवेश लिया।

 जहां पर उन्होंने भौतिक शास्त्र का प्रमुख रूप से अध्ययन किया, लेकिन बिगड़ते स्वास्थ्य कारणों से वे अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर वापस आ गये और कलकत्ता में आकर प्रेसिडेंसी महाविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक बन गये थे। अंग्रेजी प्रोफेसरों की तुलना में काफी कम वेतन मिलने के बाद भी उन्होंने पढ़ाना नहीं छोड़ा।

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बहुत ही लोकप्रिय प्रोफेसर

जगदीश चंद्र बसु प्रेसिडेंसी महाविद्यालय में प्रोफेसर पद पर कार्यरत थे। जब जगदीश चंद्र वसु अंग्रेजो के समय प्रोफेसर थे। तब उन्हें अंग्रेज प्रोफेसर के बराबर सैलरी नहीं मिलती थी।

हालाकि बाद में उन्हें अंग्रेजी प्रोफोसरों के समान दर्जा और वेतन दोनों मिलने लगे लेकिन तब तक उन पर काफी कर्जा हो चुका था जिसे चुकाने के लिए उन्हें अपनी कुछ पूर्वजों की जमीन को बेचना पड़ा था ।

 लेकिन तमाम परेशानियों झेलने के वाबूजूद भी जगदीश चंद्र बसु बहुत ही प्रसिद्ध और लोकप्रिय शिक्षक सिद्ध हुये। उनके बहुत से होनहार छात्रों ने आगे चलकर बहुत नाम भी उन्होंने कमाया जिनमें प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री सतेंद्रनाथ बोस जैसे छात्र भी शामिल थे।

जगदीश चंद्र बसु (Jagadish Chandra Bose) का प्रयोगों के तरीके से समझाने का तरीका बहुत लोकप्रिय था। जगदीश चंद्र बसु को प्रायोगिक तरीकों से पढ़ाने एवं छात्रों को समझाना उनको बेहद पसंद था।

वेद उपनिषदों का विज्ञान

लेकिन बसु का सबसे बड़ा योगदान दुनिया को भारतीय संस्कृति के बिज्ञान के पक्ष से परिचय कराना था। उन्होंने दुनिया के सामने वेदांतों और उपनिषदों का वैज्ञानिक पक्ष रखा था।

इससे सिस्टर निवेदिता स्वामी विवेकानंद और रबींद्रनाथ टैगोर, जैसे लोग तक प्रभावित हुये थे। उपनिषद आधारित विज्ञान पर उनकी किताब ‘रिस्पॉन्सेस इन द लिविंग एंड नॉन लिविंग’ का संपादन खुद सिस्टर निवेदिता ने किया था।

रेडियो तकनीकों का आधार बसु के शोध

जगदीश चंद्र बसु के वायरलेस संकेत भेजने की तकनीक पर असाधारण काम किया और सबसे पहले रेडियो संदेशों को पकड़ने के लिए अर्धचालकों का प्रयोग करना शुरु किया था। उनके द्वारा बताई गई तकनीक से ही रेडियो का विकास हो सका।

 उन्होंने अपनी खोजों से व्यावसायिक लाभ उठाने की जगह उन्होंने इन्हें सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कर दिया ताकि अन्य शोधकर्त्ता इस पर आगे काम जारी रख सकें और इस पर काम कर सकें।

वनस्पति शास्त्र के उपलब्धियां

इसके अलावा विज्ञान के लिए उनहोंने क्रेस्कोग्राफ  नामक यन्त्र का आविष्कार किया और इसके विभिन्न उत्तेजकों के प्रति पौधों की प्रतिक्रिया का अध्ययन कर उन्होंने सिद्ध किया कि वनस्पतियों और पशुओं के ऊतकों में काफी समानता होती है।

बाद में उन्होंने अपने प्रयोग के द्वारा साबित किया था कि पेड़-पैधों में जीवन होता है। इसे सिद्ध करने का यह प्रयोग रॉयल सोसाइटी में हुआ था जब उनके द्वारा यह प्रयोग सफल हुआ था तो उन्हें अंग्रेजो ने बधाइयाँ दी थी और पूरी दुनिया में उनकी द्वारा की गई खोज को सराहा गया था।

लेकिन जगदीशचंद्र बसु का एक बहुत बड़ा महत्वपूर्ण योगदान जो आज भी नजरअंदाज किया जाता है। वह था उनके द्वारा विज्ञान का साहित्य लिखना। जगदीश चंद्र बसु को तो बंगाली विज्ञान साहित्य का जनक भी कहा जाता है।

  उनकी कहानियां आम लोगों को विज्ञान से जोड़ने के लिये सिद्ध हुईं। उन्होंने विज्ञान की शिक्षा के प्रसार के लिए बोस इंस्टीट्यूट की भी स्थापना की थी जिसके वे 21 साल तक निर्देशक रहे। 23 नवंबर 1937 को उनका देहांत हो गया था। इनकी मृत्यु के समय उम्र 78 साल की थी।

इनके द्वारा किये अधिकतर प्रयोगो में आम लोगों को विज्ञान के प्रति जोड़ना उनका मुख्य लक्ष्य था। उनके द्वारा किये गये सभी कार्य सराहनीय है। उनका विज्ञान के प्रति आम जन को जोड़ने बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है।