गुरु नानक देव का जीवन परिचय 2023

गुरु नानक देव का जीवन परिचय 2023

गुरु नानक देव का जीवन परिचय प्रारंभिक जीवन

 गुरु नानक देव सिख्खों के प्रथम गुरु थे। गुरु नानक देव जी का जन्म रावी नदी के तट पर स्थित तलखंडी नामक गांव जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है कार्तिक  पूर्णिमा के दिन क्षत्रिय कुल में हुआ था। उनकी जन्मतिथि का विद्वानों में एकमत नहीं है। 

कुछ विद्वान इन की जन्म तिथि 15 अप्रैल 1469 मानते हैं। प्रचलित जन्म तिथि कार्तिक पूर्णिमा को ही मनाई जाती है। जो अक्टूबर-नवंबर में दीपावली के 15 दिन बाद पड़ती है। गुरु नानक जी के पिताजी का नाम कल्याण चंद्र या कालू मेहता जी था। गुरु नानक जी की माता का नाम तृप्ता देवी था। और उनकी एक बहन भी थी जिसका नाम नानकी था।

उनके पिताजी खेती किसानी का काम करते थे अर्थात कृषक थे और माताजी धार्मिक ग्रहणी महिला थी। तलवंडी का नाम आगे चलकर गुरु नानक जी के नाम पर ननकाना साहब पड़ गया। जो वर्तमान में लाहौर पाकिस्तान में स्थित है। गुरु नानक जी बचपन से ही तेज एवं कुशाग्र बुद्धि की बालक थे।जिनमें बचपन से ही तेज बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे।

 नानक जी बचपन से ही विवेक, विचारशील एवं आध्यात्मिक जैसे लक्षण मौजूद थे। गुरु नानक जी ने बचपन में ही अपने माता-पिता द्वारा संस्कृत और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया था अर्थात संस्कृत एवं फारसी भाषा सीख ली थी। उन्होंने संस्कृत में फारसी भाषा का ज्ञान 7 साल की उम्र में ही प्राप्त कर लिया था। तेजस्वी एवं निर्गुणी बालक थे।

 विवाह एवं व्यापार की घटना 

 बचपन में उनके माता-पिता हिंदी एवं फारसी भाषा सिखाई थी। गुरु नानक जी 14 साल की उम्र में अपने आसपास के क्षेत्रों के जानकार एवं ज्ञान वान व्यक्ति बन चुके थे। गुरु नानक जी को हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, यहूदी आदि के धार्मिक शास्त्रों का ज्ञान था और उनके माता पिता चाहते थे।

 कि उनका पुत्र व्यवसाय,व्यापार एवं कारोबार में आगे बढ़े। परंतु उनको हमेशा बचपन से ही अध्यात्मिकता एवं धर्म में अत्याधिक रुचि थी। वे अपना अधिकतम समय ज्ञान में समर्पित करते थे। इसी कारण उनके माता-पिता ने विवाह करने निश्चय कर लिया और 18 साल की उम्र में उनका विवाह सुलक्षणी नाम की सुकन्या के साथ कर दिया।

शादी के बाद उनके दो बेटे हुये थे। एक का नाम श्रीचंद था जो गुरु नानक की 28 साल की उम्र में जन्मा था तथा दूसरे का नाम लक्ष्मीदास था जो कि 31 साल की उम्र में जन्मा था उनको सांसारिक गृहस्थ जीवन में उनका मन लगाने के लिए उनके पिता ने अनेक प्रयास किये।

उनके पिताजी ने  एक बार उनको कुछ रुपए दिए और व्यापार करने के लिए भेजा। परंतु गुरु नानक जी व्यापार के लिए जाते समय रास्ते में कुछ साधु संत मिल गए। गुरु नानक जी  ने अपने पिता द्वारा दिए गए पैसे से उन साधु-संतों को भोजन करवा दिया।

गुरु नानक देव का जीवन परिचय
गुरु नानक देव का जीवन परिचय

जिसके कारण उनके पिता द्वारा दिए गये सारे पैसे खर्च हो गये और उनके पास बिल्कुल पैसे नहीं बचे थे और वह अपने गांव लौट कर वापस  गये।

जब उनके पिताजी ने उनसे पूछा कि वे बिना व्यापार किये क्यों लौटकर आ गये तो गुरु नानक ने बताया कि सच्चा सौदा कर आये है। गुरु नानक जी को धार्मिक एवं अध्यात्मिक ज्ञान वाले लोगों के साथ रहना पसंद था। गृहस्थ जीवन का त्याग करके धर्म मार्ग की ओर चल पड़े।

 प्रमुख यात्राएं

 हरिद्वार, प्रयागराज, असम,पटना,अयोध्या, जगन्नाथ पुरी,काशी,रामेश्वरम, द्वारिका, गया, पुष्कर तीर्थ, सोमनाथ, असम, नर्मदा तट, कुरुक्षेत्र, दिल्ली, मुल्तान, लाहौर, ऐमनाबाद, सियालकोट, मक्का मदीना, सुमेर पर्वत, काबुल, बगदाद, कंधार, करतारपुर, अरब, अफगानिस्तान आदि क्षेत्रों का गुरु नानक जी ने भ्रमण किया।

 प्रमुख भाषाएं

 हिंदी भाषा, फारसी भाषा, ब्रजभाषा,पंजाबी भाषा, सिंधी भाषा, खड़ी बोली, संस्कृत आदि भाषाओं उपयोग गुरु नानक जी ने किया है।

 सिख्खों के प्रमुख गुरु

  1.  गुरु नानक देव
  2.  गुरु अंगद देव
  3.  गुरु अमर दास
  4.  गुरु रामदेव दास 
  5.  गुरु अर्जुन देव
  6.  गुरु हरगोविंद
  7.  गुरु हर राय
  8.  गुरु हरकिशन
  9.  गुरु तेग बहादुर सिंह
  10.  गुरु गोविंद सिंह 

 रचनाएं

 गुरु ग्रंथ साहिब इनकी सबसे प्रचलित एवं प्रसिद्ध ग्रंथ है। बारह माह, जपजी, सोहिला, दखनी ओंकार, आसा दीवार आदि प्रमुख रचनायें।

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 गुरु नानक से जुड़े प्रमुख गुरुद्वारे

 गुरुद्वारा ननकाना साहिब, गुरुद्वारा करतारपुर साहिब पाकिस्तान में स्थित है। गुरुद्वारा अचल साहिब, गुरुद्वारा कंध साहिब, गुरुद्वारा डेरा बाबा नायक गुरदासपुर में स्थित है। गुरुद्वारा सिद्ध मठ, कुरुक्षेत्र हरियाणा में स्थित है। गुरुद्वारा मांजी साहिब करनाल हरियाणा में स्थित है।

गुरुद्वारा गुरु का बाग, गुरुद्वारा कोटि साहिब, गुरुद्वारा संत घाट,गुरुद्वारा हाट साहिब,गुरुद्वारा बेर साहिब, सुलतानपुर लोधी कपूरथला में स्थित है। गुरुद्वारा नानक वाड़ा हरिद्वार में स्थित है। गुरुद्वारा मजनू का टीला साहिब दिल्ली में स्थित है।

 गुरु नानक देव जी के उपदेश 

 गुरु नानक जी सभी धर्मों को एक समान मानते थे। गुरु नानक जी ग्रहस्त एवं सांसारिक जीवन त्याग कर सन्यास ग्रहण करने को कभी नहीं कहा। उनका कहना था  कि स्वयं का एवं समाज का कल्याण समाज में ही रहकर स्वभाविक एवं सहजता के साथ जीवन जी कर सकते हैं।

गृहस्थ जीवन जीते हुए भी मानव सेवा एवं समाज कल्याण का कार्य करना ही श्रेष्ट धर्म बताया है। गुरु नानक जी का कहना था कि ईश्वर एक है जो प्राणियों की अंतरात्मा में विराजमान है। सभी को उसी ईश्वर की आराधना करनी चाहिए। सभी को ईमानदारी और मेहनत के साथ कार्य करना चाहिए।

जितनी भी आय का अर्जन हो उसी में संतुष्ट होकर अपना जीवन यापन करना चाहिए। लालच एवं धन को इकट्ठा करने संग्रह करने से बचना चाहिए। सभी स्त्री और पुरुष समान है। किसी भी प्रकार का भेदभाव ना हो और ना किसी के प्रति घृणा का भाव ना रखें। सभी के प्रति समानता का भाव होना चाहिए।

यह सभी उपदेश गुरु नानक द्वारा मानवता के कल्याण के संदर्भ में दिए थे।लंगर प्रथा की शुरुआत गुरु नानक देव द्वारा की गई थी। लंगर में। सभी जाति, धर्म,अमीर, गरीब,ऊंच-नीच बिना किसी भेदभाव के एक साथ बैठकर सम्मान के साथ खाना खाते हैं।

 अमृतसर के गुरुद्वारा स्वर्ण मंदिर में दुनिया का सबसे बड़ा लंगर चलता है जिसमें लाखों लोगों का खाना बनता है और लाखों लोग खाना खाते हैं। इस प्रकार से से लंगर प्रतिदिन चलता रहता है। गुरु गुरु नानक निर्गुण ब्रह्मा की उपासक थे। उनके लिए सभी धर्म एक समान थे।

 मृत्यु

जब गुरु नानक जी द्वारा अपनी यात्राओं को समाप्त कर जब वापस करतारपुर आ गए थे। जो वर्तमान में पाकिस्तान में है। अपने अंतिम दिनों में करतारपुर में रह रहे थे। 22 सितंबर 1539 को परलोक गमन कर गये। मृत्यु के पहले अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो आगे चलकर अंगद देव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 गुरु नानक द्वारा समाज सुधार संबंधी अनेक प्रकार के कार्य किये गये। इनके द्वारा ही सिक्ख धर्म की नींव रखी गई। जिसके कारण इनको सिक्खों के प्रथम गुरु के नाम से भी जाना जाता है। गुरु नानक द्वारा किए गए कार्यों से लोगों मे प्रेरणा का स्त्रोत बन गये अर्थात लोगों के दिल में सदा सदा के लिए अमर हो गये।