Bageshwar Dham: भक्ति कैसी होनी चाहिए, समझिए पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी से

Bageshwar Dham: भक्ति कैसी होनी चाहिए, समझिए पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी से 

आपको तो यह पता ही है की बागेश्वर सरकार के नाम से जाने जाते पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी आज कितने अधिक लोक प्रिय है उनकी लोकप्रियता के किस्से देश के हर राज्य और शहर मे आज कल होने लगी है। पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी एक प्रसिद्ध कथावाचक है इसलिए उनकी बताई गयी बातों को अक्सर सभी लोग अपने जीवन मे अपनाते है।

पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री हमेशा अपनी कथा मे कुछ आचरण की बातें भी बीच-बीच मे बताने लगते है। इसलिए उनकी कथा और अधिक रोचक भी लगने लगती है।

पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने अपनी कथा के दौरान भक्ति के विषय पर चर्चा की उन्होंने बताया की भक्ति सही रूप मे किस तरह होनी चाहिए। देखिये दोस्तों भक्ति तो हम सभी लोग जरूर करते है लेकिन किसी को यह पता नहीं होता है की भक्ति कैसे करें और सही रूप से भक्ति का अर्थ क्या है। चलिए हम आपको बताते है की भक्ति कैसे होती है इस विषय मे पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी क्या कहते है।

भक्ति कैसी होनी चाहिए – पंडित शास्त्री

पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने कहा की भक्ति वह नही है की आप पूजा कर रहे है और आपका ध्यान कही और पर है, बल्कि भक्ति तो वह है की जब भगवान नाम का रस पियें तो किसी की याद ना आये। परीक्षित जी का उदाहरण देते हुए शास्त्री जी कहा की परीक्षित जी ने सात दिनों तक भगवान की कथा को सुना था तो उन्हें सात दिनों तक की अखंड कथा मे किसी की याद नही आयी न तो भूख लगी ना प्यास ना लोभ ना, ना नींद आये इसी को तो भक्ति कहते है, इसी का नाम भक्ति है की जब भक्ति दिल मे प्रवेश करती है तो सब कुछ अपने आप ही पूर्ण हो जाता है।

भक्ति कैसी होनी चाहिए

गोविन्द नाम ही भक्ति है

जब प्राणी के मन ने दिन रात गोविन्द का नाम बना रहे है तो वह सच मे एक भक्ति है इसलिए बिना की द्वेष और जलन से हमें भगवान की ओर समर्पित हो जाना चाहिए क्योंकि यही जीवन का परम सत्य है।

भक्ति का अर्थ

विद्वानों का का कहना है की भक्ति का अर्थ है सेवा करना या फिर भजना किसकी सेवा करना अपने ईष्ट को, मतलब की अपने ईष्ट जिसे आप मानते है इसके प्रति पूर्ण रूप से तन, मन और धन से समर्पित हो जाना ही भक्ति है। ठीक इसी प्रकार पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने भी भक्ति को इसी प्रकार से परिभाषित किया है की जब भगवान नाम ले तो किसी और का ध्यान ना आये वही भक्ति है।

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