भगवान श्री राम नें शम्बूक का वध क्यों किया था ? उत्तर रामायण का सच जाने

भगवान श्री राम नें शम्बूक का वध क्यों किया, पिछले कुछ महीनो से उत्तर रामायण में एक कथा हैं जिसमे श्री राम नें शम्बूक कि हत्या कि हैं ऐसा बताया जा रहा हैं, गलत तरिके से कुछ लोगो नें ओर कुछ विरोधियो नें जान बूझकर कुछ वीडियोस को वायरल किया जा रहा हैं, ताकि भगवान राम को ओर सनातन धर्म को गिराया जा सके,

हम आज आपको सच्चाई बताने वाले हैं कि आखिर क्यों श्री राम नें शम्बूक का अंत किया था, हम बहुत सरल भाषा में आपको समझायेगे ताकि सत्य आपको जल्दी समझ आ सके, 

एक बार भगवान राम के पास एक औरत ओर पुरुष आये जोकि श्री राम के राज्य के थे, वो अपने मरे हुए बेटे का शव भी साथ लेकर आये ओर श्री राम से बोले कि आपके राज्य में कुछ गलत हो रहा हैं, मेरे बेटे कि अकाल मृत्यु कैसे हुई, ओर भगवान राम को बहुत सारे अपशब्द कहे, श्री राम चुप रहे श्री राम बड़े दयालु, विनम्र, मर्यादापुरुषोत्तम थे.

क्योंकि त्रेता युग में जो धर्म के रास्ते पर ओर नियम से चलता था उसके राज्य में या प्रजा में अकाल मृत्यु नहीं होती थी,

श्री राम नें कहा कि अगर कुछ गलत हो रहा हैं तो में अपने कुश (श्री राम के पुत्र) को आपको हमेशा के लिए दान कर दूंगा, माता सीता नें कहा कि में आपके लव को आपको दान कर दूँगी, मुझसे बढ़कर मेरी प्रजा हैं, लेकिन आप चिंता ना करें, आपका दुःख हमारा दुःख हैं, ओर श्री लक्ष्मण तेल से भरा बर्तन लाये जिसमें कि उस सव को रखा जा सके जिससे शरीर में कीड़े ना पड़े जो सव वो स्त्री ओर पुरुष लाये थे,

उसके बाद 6 ओर लोगो कि मौत हुई, ओर उनके सव को राम सभा में लाया गया, कुल 7 लोगो कि अकाल मौते हुई थी, जोकि ये संकेत कर रही थी कि कुछ गलत हो रहा हैं,

उसके बाद राजा श्री राम नें अपने गुरु से पूछा, ओर इसी बीच नारद मुनि भी पधारे, श्री राम नें नारद से पूछा, तो नारद जी नें बताया कि त्रेता युग में केवल ब्राह्मण ओर क्षत्रिय ही तप कर सकते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं हैं कि सूद्र को तप नहीं करना चाहिए या भगवान नहीं मिल सकते हैं, बिना तप के भी भगवत कृपा मिल सकती थी,

नोट – सतयुग में ब्राह्मण ही तप कर सकते थे, त्रेता युग में ब्राह्मण ओर क्षत्रिय को तप करने के अधिकार हैं, द्वापर में ब्राह्मण, क्षत्रिय ओर वैश्य को तप करने का अधिकार था ओर कलयुग में सभी लोग तप कर सकते हैं.

अगर इस नियम का पालन नहीं किया तो अकाल मृत्यु होना शुरू हो जाएगी, ये नियम था.

ओर नारद मुनि नें श्री राम से कहा कि आपके राज्य में कोई वर्ण विपरीत तप कर रहा हैं, जो नियम के विरुद्ध हैं इसलिए अकाल मृत्यु हो रही हैं, इसके बाद श्री राम पुष्पक विमान का ध्यान करके पुष्पक विमान को बुलाया, ओर चारो दिशाओ में श्री राम जी उस व्यक्ति को ढूंढ़ने निकलें,

भगवान श्री राम नें शम्बूक का वध क्यों किया
भगवान श्री राम नें शम्बूक का वध क्यों किया

श्री राम ओर शम्बूक का संबाद

उवाच राघवो वाक्यं धन्यस्त्वममरप्रभ । कस्यां योनौ तपोवृद्धिर्वर्तते दृढनिश्चय ॥ अहं दाशरथी रामः पृच्छामि त्वां कुतूहलात् । कोऽर्थो व्यवसितस्तुभ्यं स्वर्गलोकोऽथ वेतरः ॥ किमर्थं तप्यसे वा त्वं श्रोतुमिच्छामि तापस। ब्राह्मणो वासि भद्रं ते क्षत्रियो वाथ दुर्जयः ॥ वैश्यस्तृतीयवर्णो वा शूद्रो वा सत्यमुच्यताम् । तपः सत्यात्मकं नित्यं स्वर्गलोकपरिग्रहे ॥ (पद्मपुराण, पातालखण्ड, अध्याय ३५, श्लोक ७०-७३)

उसके पास जाकर रामजी ने इस प्रकार कहा- हे देवताओं के समान तेज वाले ! तुम धन्य हो। इस प्रकार से कठिन तपस्या करने वाले तुम कौन हो ? तुम्हारा निश्चय तो दृढ़ लग रहा है। तुम किस योनि में जन्म लेकर अपनी तपस्या को बढ़ा रहे हो ? मैं दशरथपुत्र राम हूँ, और कुतूहलवश तुमसे पूछता हूँ, कहीं तुम्हें स्वर्ग की कामना तो नहीं है, अथवा कुछ और बात है ? तुम्हारा कल्याण हो ! तुम ब्राह्मण हो, या क्षत्रिय हो, तीसरे वर्ण के वैश्य हो या शूद्र हो ? तुम्हारी इस उग्र तपस्या का उद्देश्य क्या है ? देखो, सत्य में ही तपस्या निहित रहती है, सत्य के पालन से ही स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है, अतः तुम सत्य कहो। रामजी की बात सुनकर शम्बूक ने कहा-

स्वागतं ते नृपश्रेष्ठ चिराद्दृष्टोऽसि राघव । पुत्रभूतोऽस्मि ते चाहं पितृभूतोऽसि मेनघ ॥ अथवा नैतदेवं हि सर्वेषां नृपतिः पिता । सत्वमर्य्योऽसि भो राजन्वयं ते विषये तपः ॥

(पद्मपुराण, पातालखण्ड, अध्याय ३५, श्लोक – ७९-८० )

शम्बूक ने कहा- हे राजाओं में श्रेष्ठ राघव ! आपका स्वागत है, आपसे बहुत दिनों के बाद आपसे भेंट हुई। हे निष्पाप राम ! मैं तो आपके पुत्र के समान हूँ और आप मेरे पितातुल्य हैं। अथवा इसमें कौन सी नई बात है ! राजा तो प्रजा के लिए सदैव पितातुल्य ही है।

शूद्रयोनिप्रसूतोऽहं तप उग्रं समास्थितः । देवत्वं प्रार्थये राम स्वशरीरेण न मिथ्याहं वदे भूप देवलोकजिगीषया । शूद्रं मां विद्धि काकुत्स्थ शम्बूकं नाम नामतः ॥ (स्कन्दपुराण, सृष्टिखण्ड, अध्याय ३५, श्लोक – ८३-८४) –

हे श्रेष्ठ व्रत का पालन करने वाले राम ! मैं शूद्रयोनि में उत्पन्न हुआ शम्बूक हूँ। मैं यहाँ उग्र तपस्या में लीन हूँ, मेरी इच्छा है कि मैं इसी शरीर से देवता बन जाऊं । हे राजन् ! मैं देवताओं के लोक की प्राप्ति की अभिलाषा रखता हूँ, मैं झूठ नहीं बोलता । है ककुस्थवंशी राम ! आप मुझे शम्बूक नामक शूद्र जानें।

भगवान श्री राम नें शम्बूक का वध क्यों किया
भगवान श्री राम नें शम्बूक का वध क्यों किया

शूद्रस्त्रिरात्रं कुरुते विषये यस्य भूपतेः । तस्य सीदति तद्राष्ट्रं व्याधिदुर्भिक्षतस्करैः ॥ तपः कुर्वीत शूद्रस्तु चैकद्विदिवसान्तरम्। यथाशक्ति द्विजश्रेष्ठास्तेन कामानुपाश्नुते ॥ (विष्णुधर्मोत्तरपुराण, खण्ड – ०३, अध्याय – ३२०, श्लोक – ११-१२) –

जिसके राज्य में शूद्र तीन दिन से अधिक कठोर तपस्या कर लेता है उस राजा के राज्य में अकाल, आतंकवाद और महामारियों का प्रकोप हो जाता है । इसीलिए हे ब्राह्मणों ! शूद्र को बस एक या दो दिन का, या इससे भी कम, यथाशक्ति का व्रत करना चाहिए, इसी से उसकी सारी मनोकामना पूरी हो जाती है।

जङ्घनामाऽसुरः पूर्वं गिरिजावरदानतः । बभूव शूद्रः कल्पायुः स लोकक्षयकाम्यया। तपश्चचार दुर्बुद्धिरिच्छन्माहेश्वरं पदम्॥ (महाभारत तात्पर्य निर्णय, अध्याय – ०९/२०) (हनुमान जी कहते हैं)

यह शम्बूक पिछले जन्म में जंघासुर नाम का राक्षस था, जो पार्वती देवी के वरदान से युक्त था। यह अगले जन्म में एक कल्प (चार अरब, बत्तीस करोड़ मानवीय वर्ष) की आयु वाला शूद्र बना और फिर उस दुर्बुद्धि ने घोर तपस्या प्रारम्भ की। वह तपस्या करके साक्षात् रुद्र का पद पाकर संसार को नष्ट करना चाहता था।

श्री राम शम्बूक से

इस समय मैं तुझे मारकर उन लोगोंको जीवित करूँगा, जो तेरे धर्मविरुद्ध आचरण अकालमृत्युके ग्रास बने हैं। पर मैं तेरी इस तपस्यासे प्रसन्न हूँ। बोल, तेरी नया कामना है? इस प्रकार राम की वाणी सुनकर भयभीत हो और नीचा मस्तक किये हुए बार-बार प्रणाम करके उस ने कहा है रावण अभिमानको दूर करनेवाले राम ! यदि वास्तव में आप मेरे ऊपर प्रसन्न है तो मुझे वह वरदान दीजिये कि जिससे शूद्रजातिको भी सद्गति प्राप्त हो, साथ ही मेरा भी उद्धार हो जाय। इस तरह शूद्रकी दीनतापूर्ण बात सुनकर रामचन्द्रजी बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे। १०५-१०८ ॥ “राम” इस पवित्र नामका जो शुद्ध सदा जप कीर्तन तथा चिन्तन करते रहेंगे, उन लोगोंको सद्गति प्राप्त होगी और तुम भी इस तपस्याको छोड़कर मेरा चिन्तन करो। तुम्हारे इस उपकारसे शूद्रोंमें तुम्हारी कीर्ति होगी। इस प्रकार रामचन्द्रजीके द्वारा वर पाकर शम्बूक ने कहा- हे रघुत्तम आगे महाकलयुग आनेवाला है उसमें सूद्र जाती के लोग बड़े मूर्ख होंगे। वे अपनी खेती-बारीके काममें ही व्यस्त रहेंगे। ऐसी अवस्थामें उन्हें जप तथा कीर्तन करने का अवसर कहाँ मिलेगा। इन शुभ कर्मोकी और उनकी बुद्धि कैसे जायगी। अतएव उनके अनुरूप कोई वरदान दीजिए। उसकी यह बात सुनी तो प्रसन्न होकर रामने कहा कि वे लोग एक-दूसरेको प्रणाम आशीय के समय “राम-राम” ऐसा कहेंगे, इसी से उनका उद्धार हो जाया करेगा ।। १०९-११४ ।। उस शूद्रसमाज में तुम्हारी यही कीर्ति होगी। आज तुम हमारे हाथों मरकर वैकुण्ठयामको प्राप्त होओगे। इसके अनन्तर उसने रामसे यह वर माँगा कि आप सीता तथा लक्ष्मणके साथ सर्वदा इस पर्वतपर निवास करें ।। ११५ ।। ११६ ।। जो लोग यहाँ आकर पहले मेरा दर्शन करने के पश्चात् आपका दर्शन करें, उनको मोक्षपद प्राप्त हुआ करे। इसके सिवाय जो लोग भ्रमवश बिना मेरा दर्शन किये ही आपका दर्शन कर लें, उनका भी उद्धार हो जाय। रामने ‘तथास्तु’ कहकर भक्तिका वर दिया और उसे मारकर उन अकाल मृत्युसे मरे हुए लोगों को जीवित किया, जो ब्राह्मण- क्षत्रियादि सात प्राणी अयोध्या मरे पड़े थे ।। ११७-१२० ।। हे विष्णुदास ! तभी से इस पृथ्वीतलमें शूद्रलोग आपस में प्रणाम-आशीषके अवसरपर “राम-राम” कहा करते हैं.

ओर श्री राम कि कृपा से सूद्र शम्बूक का शरीर सहित स्वर्ग लोग चला गया.

भगवान श्री राम नें शम्बूक का वध क्यों किया
भगवान श्री राम नें शम्बूक का वध क्यों किया

ऐसे नियम क्यों थे ?

इस दुनिया में कुछ भी ढंग से करने के लिए नियम का होना बहुत आवश्यक हैं, ओर नियम का पालन होना भी आवश्यक हैं, बिना नियम कुछ ढंग का इस दुनिया में नहीं हो सकता हैं, समय स्थान ओर अवस्था के अनुसार नियम भी जरूरी हैं, घर में, समाज में, सभी जगह नियम का होना जरुरी हैं बिना नियम के सब टूट जाता हैं, अगर आपको खाना बनाना हैं तो उसकी भी पूरी प्रक्रिया हैं, नियम हैं.

हमने क्या सीखा ?

1 – श्री राम द्वारा शम्बूक का वध करना कोई नफ़रत या घृणा नहीं हैं, बल्कि शम्बूक को वर देकर उसे स्वर्ग लोक भेजना ओर पाप मुक्त करना हैं, भगवान कभी भी किसी भी जीव पर अन्याय नहीं करते हैं, वे ही श्रस्टि के रचयता हैं.

2 – जिंदगी में, समाज, दुनिया में नियम का होना जरुरी हैं ओर उन नियम का पालन करना जरूरी हैं, बिना नियम कोई काम ढंग से नहीं किया जा सकता हैं.

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Faq

  • श्री राम ने शंबूक ऋषि को क्यों मारा?

    श्री राम नें शम्बूक ऋषि को इसलिए मारा क्योंकि शम्बूक पूरी दुनिया को नस्ट करना चाहता था, इसलिए तप कर रहा था, इसलिए संसार के कल्याण के लिए शम्बूक का वध करना पड़ा.

  • क्या श्री राम जातिवादी थे ?

    नहीं श्री राम जाती वादी नहीं थे, वे धर्मनुसार अपने राज्य में नियम के तहत प्रजा का कल्याण करते थे, श्री राम जातिवादी नहीं थे.

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2 Comments

  1. is samwad me shambuk rishi ne kahi nahi kaha ki wo dunia ko nast karna chahte hai ye galat bat hai , jaise kai filmo me kai kirdar jo galat karta hai use bhi hero bana diya jata hai ye director ke uper nirbhar karta hai kisko hero banana hai aur kisko khalnayak,

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