पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा पर निबंध 2023, बच्चे को शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरतों के अनुसार भोजन मिलना आवश्यक है। जिससे उसकी सही वृद्धि और विकास हो सकेगा। कई बच्चे जन्म से ही कुपोषण का शिकार होते है।
शरीर की जरूरतों की पूर्ति ना होने के कारण बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। शरीर को जरूरत के अनुसार पोषण ना मिलना कुपोषण कहलाता है। देश के कुपोषित बच्चों के लिए क्या पूछना देने के लिये सरकार कई प्रयास कर रही है।
बच्चों में कुपोषण के कारण अपर्याप्त भोजन एवं संतुलित आहार ना लेना है इसके अलावा महिलाओं की निम्न स्थिति, साक्षरता का अभाव,पोषण की जानकारी ना होना साफ पानी का अभाव, स्वास्थ सेवाओं की कमी आदि कुपोषण का कारण बनती है।
कुछ सामाजिक परंपराओ जैसे बाल विवाह, लड़की लड़की में खान-पान में, गरीबी, संसाधनों की कमी आदि से भी कुपोषण होता है। कुपोषण इतना फैल गया है कि पीढ़ी दर पीढ़ी कुपोषण का चक्र चलने लगा है।
कुपोषण को खत्म करना हम सबकी जिम्मेदारी है। महिलाओं व समुदाय के अन्य लोगों को पोषण एवं स्वास्थ्य के विषय में जानकारी प्रदान करके न सिर्फ कुपोषण को दूर किया जा सकता है बल्कि मातृ शिशु मृत्यु दर कम करके, स्वास्थ संबंधी विभिन्न प्रकार की समस्याओं नियंत्रण पाया जा सकता है।
पोषण शिक्षा से तात्पर्य है खानपान की सही आदतों गलत तरीके, पोषण, कुपोषण, सुपोषण का अर्थ व सही व संतुलित आहार क्या है व कैसे तैयार किया जाता है, की जानकारी देना।
इसी प्रकार स्वस्थ शिक्षा के मायने है कि किस प्रकार संक्रमण व उससे होने वाली बीमारियों से दूर रहा जाये व उनसे होने वाले शारीरिक, पारिवारिक, सामाजिक व आर्थिक दुष्परिणाम की जानकारी देना।
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पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा पर निबंध 2023
हम बातचीत के दौरान कितनी भोजन संबंधी कहावतों एवं मुहावरे का प्रयोग करते है। जैसे- जैसे खाये अन्न, वैसा होए मन, भूखे पेट भजन ना होय गोपाला, दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम, मुंह से लार टपकना, खाए बिना रहा ना जाए, एक थाली में खाना, भोजन पेट में पड़ना आदि। और कई लोकोक्तियां और मुहावरे होंगे जो लोग जानते होंगे। भूख लगती ही भोजन के बारे में सोचते है। इसका मतलब है हमारे जीवन में भोजन बहुत महत्वपूर्ण है।

” बोलचाल की भाषा में हम जो रोज खाते है,वह भोजन है। परिभाषा के रूप में कहे तो कोई भी खाद्य पदार्थ जो मुँह द्वारा ग्रहण किया जाये व शरीर के लिए उपयोगी हो भोजन कहलाता है। ” अर्थात भोजन का संबंध शरीर को पोष्टिक तत्व प्रदान करने वाले पदार्थों से है। भोजन में वे सभी ठोस,अर्ध तरल व तरल पदार्थ शामिल हैं जो शरीर की आवश्यक जरूरतों को पूरा करते हैं। शरीर को सक्रिय व स्वास्थ्य बनाते हैं।
भोजन का पाचन के बाद शरीर संचालन में उपयोग होना ही पोषण कहलाता है। भोजन और उसके पोषण की जानकारी माताओं और समुदाय के अन्य सभी सदस्यों को होना चाहिए। ताकि बच्चों की स्वास्थ्य व पोषाहार संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सके, कमजोर बच्चे के स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सके।
पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा व्यक्ति के विचार व व्यवहार में परिवर्तन लाती है। स्वास्थ्य एवं पोषण शिक्षा से व्यक्ति कई प्रकार की बीमारियों से बच सकता है। और बीमारियों के इलाज संबंधी होने वाले खर्चे से भी वच सकते है।
पोषण संबंधी जानकारी होना अति आवश्यक है। पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा से ही मनुष्य की संपूर्ण जीवन के विकास की नींव रखी जाती है। और बच्चे को उसकी उम्र के अनुसार पोषण न मिलने के कारण बच्चे में कई प्रकार की विकृतियां उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है।
जिससे बच्चा कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को पोषण स्वास्थ्य संबंधी जानकारी होना अनिवार्य है। पोषण संबंधी जानकारी होने से बच्चे के पोषण संबंधित सही से देखभाल की आसानी से की जा सकती है।
महिलायें परिवार की धुरी होती है क्योंकि महिलाएं ही परिवार की संपूर्ण देखभाल करती हैं। उन्हें पोषण एवं स्वास्थ शिक्षा संबंधी जानकारी होना आवश्यक है। क्योंकि ज्यादातर महिलाएं ही बच्चे पोषण की देखभाल करती है।
पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा गर्भवती व धात्री महिलाओं तथा समुदाय की सभी महिलाओं तक पहुंचाने का प्रयास किया जाना चाहिए। यह एक लंबी अवधि तक चलने वाला लक्ष्य है। जिससे समुदाय का विकास करने में हम अपना योगदान दे सकते हैं।
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पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा योजना बनाते समय ध्यान रखें
- आसपास के लोगों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करें।
- समुदाय के प्रभावशील लोगों का चयन करें।ऐसे व्यक्ति समुदाय की सोच बदलने में मदद करते हैं।
- ट्रिपल ए एप्रोच – एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे समुदाय की स्वास्थ्य और पोषाहार संबंधी समस्या का आकलन (एनालिसिस ) करते हुए उस समस्या के समाधान हेतु उचित कार्यवाही (एक्शन ) कर सकते है।
- समुदाय की आवश्यकताओं का पता लगाएं। समाज में प्रचलित रीति रिवाजों,व्यवहार आदतों का पता लगाएं जो समुदाय के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
- समुदाय की जरूरतों की प्राथमिकता निर्धारित करें ताकि चाचा की जाने वाले विषयों का क्रमबार निर्धारण कर सकें।
- समुदाय की संस्कृति, विचारधारा, प्रथाओं, आर्थिक स्थिति व उपलब्ध संसाधनों का पता लगाएं।
- शिक्षण के लिए लक्ष्य एवं उद्देश निर्धारित करें।
- उपयुक्त शिक्षण सामग्री और शिक्षण विधी का चुनाव करें।
- सहायक सामग्री के रूप में विषय से संबंधित चार्टस, पोस्टर संदेश आदि तैयार करें।
- प्रकाशित शिक्षण सामग्री प्राप्त करें।
- पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने के लिए अवधी, स्थान तथा समय का निर्धारण करें।
पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने हेतु कौशल
शिक्षण तभी सफल होता है जब वह प्रभावी हो। स्वास्थ्य शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए निम्न कुशलताऐं होनी चाहिए –
- हम जो शिक्षण देना चाहते है, उस विषय की पूरी जानकारी होना चाहिए।
- अपने आस-पास के क्षेत्र मैं चल रहे कार्यक्रमों की पूरी जानकारी होना चाहिए न कि आधा अधूरी।
- स्थानीय भाषा की जानकारी होनी चाहिए ताकि लोग आसानी से बात समझ सके और अपनी बात रख सके।
- शिक्षण शोरगुल माहौल में नहीं होना चाहिए। दूर शांत माहौल में होना चाहिए जिससे शिक्षण प्रभावी बन सके।
- वक्ता में सुनने की क्षमता व सहनशीलता होनी चाहिए। ताकी बोलने पर लोगों की राय जान सकें, स्थानीय आदतों, व्यवहारों रीति-रिवाजों को जान सके और लोगों को उसमें परिवर्तन के लिए तैयार कर सकें।
- शिक्षक की आवाज में उतार-चढ़ाव के साथ स्पष्ट शब्दों में समय व्यावधान होने पर विचलित ना हो। शांति बनाने का प्रयास करें।
- शारीरिक हाव भाव संतुलित और मर्यादित हो।
- पहनावा सादा और प्रभावी हो।
- वेशभूषा शैक्षणिक स्तर की हो।
- सहायक सामग्री का उपयोग कुशलता से करें। चाहे तो किसी प्रतिभागी की मदद ले सकते हैं।
- अंत में विषय का सार प्रस्तुत कर कुछ प्रश्न पूछे। जिससे प्रतिभागियों के समक्ष आकलन हो सके।