चीन के चंद्रमा पर बनने वाले स्टेशन बेस को मिलेगी परमाणु ऊर्जा

चीन के चंद्रमा पर बनने वाले बेस को मिलेगी परमाणु ऊर्जा चंद्रमा पर अपने बेस के लिए चीन एक नाभकीय तंत्र (Nuclear system) तैयार कर रहा है। यह नाभिकीय तंत्र चंद्रमा पर चीन के बेस के लिए ऊर्जा के स्रोत के रूप में काम करेगा।

चीन रूस के साथ मिलकर चंद्रमा पर एक रिसर्च सेंटर बनाने जा रहा है। जो लगभग 2028 तक तैयार होने का अनुमान लगाया जा रहा है। चीन का यह नाभकीय तंत्र चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मनाया जाएगा बनाया जायेगा।

चीन के चंद्रमा के आधार  पर ऊर्जा आपूर्ति के लिए यह नाभिकीय ऊर्जा तंत्र बना रहा है

इसे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बनाया जायेगा और वह लगभग एक मेगावाट बिजली पैदा कर सकेगा। रूस की सहायता से चीन साल 2028 तक इस स्टेशन को लगभग बनकर तैयार कर लेगा।हाल ही में नासा के आर्टिमिस का प्रथम चरण के सफल प्रक्षेपण के कारण अब चंद्रमा पर इंसान के रहने एवं बसने के बातें होने लगी है।

 अमेरिकी एजेंसी नासा का कहना है कि इस दशक के लगभग अंत तक वहां पर वैज्ञानिकों के लिए आवासों के लिए अवासों निर्माण कार्य शुरू हो जाएंगे और वे वहां रह कर वे काम करने लगेंगे एवं वहां पर रहकर शोध कार्य जारी रख सखेंगे। लेकिन इसके दौरान चीन भी चंद्रमा पर जाने की तैयारी कर रहा है।

 चीन एक नया प्रोजेक्ट न्यूक्लिर सिस्टम तैयार कर रहा है जिसे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बनाया जायेगा। यह जानकारी या सूचना ऐसे समय पर आई है जब नासा का आर्टिमिस स्पेस  का ओरियॉन यान लगभग चंद्रमा के नजदीक पहुंचने वाला है।

रूस के सहयोग से बन रहा है स्टेशन

चीन के साउथ चाइना के एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी। उसमें बताया कि यह नया तंत्र चंद्रमा पर स्टेशन की आवश्यकताओं के अनुरूप ऊर्जा की पूर्ति करेगा। यह स्टेशन चीन के नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन और रूसी स्पेस एजेंसी रोसकोसमोस के साथ मिलकर तैयार कर रहे हैं और यह बनकर साल 2028 तक पूरा हो जायेगा।

चीन के चंद्रमा पर बनने वाले स्टेशन बेस को मिलेगी परमाणु ऊर्जा
चीन के चंद्रमा पर बनने वाले स्टेशन बेस को मिलेगी परमाणु ऊर्जा

कैसा होगा चीन का स्टेशन

 चीन के स्टेशन की अधोसंरचना में एक हापर,एक लैंडर,  एक ऑर्बिटर और एक रोवर होगा। इस स्टेशन का बनकर तैयार हो जाने के बाद उसके नाभकीय तंत्र का उपयोग वहां के प्रयुक्त यंत्रों के संचालन के लिए उपयोग  किया जायेगा।

 इसके अलावा नाभिकीय तंत्र की ऊर्जा का उपयोग चंद्रमा बहुत भू स्थल से पानी निकालने और इसका उपयोग ऑक्सीजन का उत्पादन करने के लिए भी किया जायेगा।

रोवर और हॉपर

चीनी वैज्ञानिकों ने नाभिकीय ऊर्जा स्टेशन की विस्तार से जानकारी नहीं दी लेकिन पिछली रिपोर्ट में खुलासा किया था कि यह नाभिकीय ऊर्जा तंत्र एक मेगावाट की बिजली का उत्पादन कर सकेगा।

लेकिन वहां के वैज्ञानिकों ने बताया कि नाभिकीय की उर्जा स्टेशन मे बड़े रोवरों का उपयोग किया जाएगा। जिनका उपयोग परिवहन के लिए किया जायेगा जिनकी सहायता से यातायात में सुगमता उपलब्ध होगी।

इसके अलावा हॉपर का उपयोग जो क्रेटर में से निकल कर पानी की खोज करने का काम में सहायता करेंगे।

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चीन तेजी से कर रहा है अनुसन्धान कार्य 

इसके अतिरिक्त नाभकीय ऊर्जा तंत्र उन संचार तंत्रों को ऊर्जा प्रदान करने का भी काम करेंगे जो पृथ्वी से लगातार संपर्क बनाए रखने का काम करेंगे। चंद्रमा पर मानव रहित लैंडिंग 2013 में चीन ने सबसे पहले की थी। और उम्मीद की जा रही है कि चीन लगभग इस दशक के अंत अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर उतार सकता है।

चांद पर कब्जे की तैयारी

अमेरिका स्पेस एजेंसी नासा का कहना है कि चंद्रमा पर चीन कब्जा करने के उद्देश्य से अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम के अंतर्गत चंद्रमा पर अपना कब्जा करने की सोंच रहा।  इस प्रकार के आरोप को चीन ने खारिज कर दिया है।

लंबे समय से लगातार अंतरिक्ष अनुसंधान में केवल चीन ना केवल आत्मनिर्भर होने का प्रयत्न लगातार कर रहा है बल्कि अमेरिका एवं अन्य देशों से आगे भी निकलना चाहता है। पिछले दशक चीन बहुत ही तेजी के साथ अंतरिक्ष अनुसंधान काफी सुधार किया है और ज्यादा क्षमता बढ़ाने की कोशिश लगातार कर रहा है।

  मॉरनिंग पोस्ट साउथ चाइना की रिपोर्ट के अनुसार बताया गया कि चाइना की वैज्ञानिक टीम अब एक नये संयंत्र उपकरण भी विकसित कर रही है जिसके द्वारा जो नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग कर चाँद पर स्टेशन बनाकर  स्टेशन के द्वारा लंबे समय तक ऊर्जा का उपयोग किया जा सके।

इस संयंत्र द्वारा एक मेगा वाट की बिजली उत्पन्न की जा सकेगी। वैसे तो एक मेगावाट की बिजली बहुत ज्यादा नहीं होती है, लेकिन इसके द्वारा सैकड़ों घरों को लगभग एक वर्ष तक बिजली वितरित की जा सकती है।

आने वाले सालों में चीन चंद्रमा पर मानव रहित चंद्र प्रक्षेपणयानों को चंद्रमा पर उतारेगा। जिनमें से एक का उद्देश्य वहां पर पानी तलाश  करना होगा। चंद्रमा पर पानी की उपस्थिति सौरमंडल के बारे में संक्षिप्त रूप से जानकारी प्रदान कर सकती है।

इससे यह भी पता चल सकता है कि वहां लंबे समय के रहने की स्थिति में यह पानी कितना उपयोगी हो सकता है तथा कितने समय के लिए वहां पर पानी उपलब्ध है।