वराहमिहिर का जीवन परिचय 2023

वराहमिहिर का जीवन परिचय 2023

प्रारंभिक जीवन

वरहमिहिर का जन्म ब्राह्मण परिवार 499 ईसवी में पांचवी छठवीं शताब्दी के लगभग माना जाता है वराहमिहिर का जन्म उज्जैन के पास में शिप्रा नदी के पास तब कपिथ्य नामक स्थान पर हुआ था।वराहमिहिर के पिता का नाम आदित्य दास था।

उनका परिवार ब्राह्मण होने के कारण उनके परिवार में नियमित रूप से पूजा पाठ एवं धार्मिक कार्य होते थे। उनके पिता भगवान भास्कर जी के परम भक्त थे। वराहमिहिर बचपन से ही मेधावी एवं तेजस्वी बालक थे।

 वराहमिहिर बचपन से ही किसी भी काम को जल्दी सीख जाते थे। वह बचपन से ही वराहमिहिर तेज दिमाग वाले बालक थे। उन्होंने अपने पिता के संरक्षण रहकर ही ज्योतिषशास्त्र का गहन अध्ययन किया था बचपन की शिक्षा उन्होंने अपने पिता से ही प्राप्त की थी।

वराहमिहिर का कैरियर

 वराहमिहिर ने बचपन की शिक्षा पिता से प्राप्त कर आगे की शिक्षा के लिए वे अपनी युवावस्था में कुसुमपुर पटना गये। क्योंकि पटना बिहार उस समय शिक्षा का मुख्य केंद्र हुआ करता था और वहां पर नालंदा विश्वविद्यालय स्तिथ था।वहां पर उनकी मुलाकात खगोल वैज्ञानिक एवं महान गणितज्ञ आर्यभट्ट जी से हुई।

कहा जाता है कि वराहमिहिर ने आर्यभट्ट को अपना गुरु बना लिया और उनके द्वारा उच्च शिक्षा का अध्ययन करने लगे। आर्यभट्ट से ज्योतिष विद्या एवं खगोल विज्ञान के बारे में ज्ञान प्राप्त करने लगे और उन्होंने खगोल विज्ञान ज्योतिष विद्या को अपना आधार बना लिया।

 उस समय वहां पर बुद्ध गुप्त का शासन था। वहां के शासक बुद्ध गुप्त के अथक प्रयासों के द्वारा कला विज्ञान एवं संस्कृत केंद्रों का बढ़ावा मिला और वहां पर उनका संपर्क अनेक विद्वानों से होने लगा जिसके कारण उनका ज्योतिष ज्ञान भी बढ़ने लगा।

जब उनके खगोल एवं ज्योतिष ज्ञान के बारे में उज्जैन के शासक विक्रमादित्य चंद्रगुप्त (द्वितीय) को भी पता लगा तो वराहमिहिर को तुरंत विक्रमादित्य चंद्रगुप्त ने अपने राज दरबार में बुलवा लिया और उन्हें हनुमान अपूर्वक अपने राज दरबार के नवरत्नों में शामिल कर लिया।

वराहमिहिर की भविष्यवाणी 

 महाराजा विक्रमादित्य चंद्रगुप्त के राज दरबार में एक बार वराहमिहिर ने राजकुमार के बारे में भविष्यवाणी की थी। वराहमिहिर ने ग्रह नक्षत्रों के आधार पर राजा के पुत्र की मृत्यु भविष्यवाणी की थी। जिसमें उन्होंने बताया था। जब राजकुमार 18 वर्ष की उम्र के हो जाएंगे तो उनकी मृत्यु हो जाएगी।

उन्होंने यह भी बताया था कि उनके पुत्र की मृत्यु कोई टाल नहीं सकेगा। यह भविष्यवाणी सुनकर राजा चिंतित हुये और राजकुमार की देखरेख की विशेष व्यवस्था की। जिससे ताकि राजकुमार का स्वास्थ्य ना बिगड़े अर्थात बीमार ना हों। राजा के अनेक प्रयासों के बावजूद अपने पुत्र के प्राण नहीं बचा सके।

जिस दिन की वराहमिहिर ने भविष्यवाणी की थी

उसी दिन राजा विक्रमादित्य चंद्रगुप्त के पुत्र की मृत्यु हुई थी। महाराजा विक्रमादित्य ने भरे राज दरबार में कहा कि मेरी हार और आपकी जीत हुई है।

मिहिर ने राजा को बड़ी विनम्रता से जवाब देते हुये कहा कि महाराज मैं क्षमा चाहता हूं यह मेरी जीत नहीं है वल्कि यह तो असली में ज्योतिष विज्ञान की जीत है। मैंने तो ग्रह नक्षत्रों के आधार पर ज्योतिष गणना की थी। महाराजा विक्रमादित्य चंद्रगुप्त ने उनकी सटीक भविष्यवाणी से प्रसन्न होकर मिहिर को मगध साम्राज्य का बहुमूल्य सम्मान वराह से सम्मानित किया।

जिसके कारण तभी से मिहिर, वराहमिहिर के नाम से जाने जाने लगे और आगे चलकर वराहमिहिर के नाम से प्रसिद्ध हुये। उनके ज्योतिष विज्ञान एवं खगोल विज्ञान बड़े ज्ञाता एवं जानकर होने के कारण विक्रमादित्य चंद्रगुप्त द्वितीय अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया।

 कृतियां

 बृहज्जातक,बृहत्संहिता, एवं पंच सिद्धांतिका उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। इन पुस्तकों में त्रिकोणमिति के महत्वपूर्ण सूत्र बड़े वर्णित है। पंच सिद्धांतिका में वराहमिहिर से पूर्व प्रचलित पाँच सिद्धांतों का वर्णन है। जिनमें पोलिस सिद्धांत, रोमक सिद्धांत,वशिष्ट सिद्धांत, सूर्य सिद्धांत तथा पितामह सिद्धांत।

 वराहमिहिर ने ‘बीज’नामक संस्कार का भी निर्देश किया है। इन्होने फलित ज्योतिष के लघु जातक, बृहज्जातक, बृहत संहिता, नामक तीन ग्रंथ भी लिखे बृहत्संहिता में वास्तु विद्या, भवन -निर्माण-कला, वायुमंडल, प्रकृती आदि के बारे में वर्णन किया गया है।

वराहमिहिर अपनी पुस्तक के बारे में कहते हैं कि ज्योतिष विद्या एक अथाह सागर है और हर कोई से इसे आसानी से पार नहीं कर सकता मेरी पुस्तक एक सुरक्षित नाव है, जो इसे पढ़ेगा वह इसे पार ले जायेगी। इस पुस्तक को ग्रन्थ रत्न की तरह समझा जाता है।

जिनमें प्रमुख कृतियां पंच सिद्धांतिका, बृहज्जातक, लघु जातक, बृहत्संहिता, टिकनिक यात्रा, योग यात्रा या स्वल्प यात्रा, वृहत् विवाह पटल,लघु विवाह पटल, कुतूहलमंजरी, दैवज्ञ बल्लभ, लग्नावाराहि आदि कृतिया प्रमुख है।

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 त्रिकोणमिति

वराहमिहिर ने त्रिकोणमिति के सूत्रों का भी प्रतिपादन किया है जिनमें sin2x+cos2x=1

sinx+=cos(pi/2-x)

1-cos2x/2 sin2क्

वराहमिहिर ने आर्यभट्ट प्रथम द्वारा प्रतिपादित ज्या सारणी को अधिक परिशुद्धता के साथ प्रतिपादित किया है।

 संख्या सिद्धांत

वराहमिहिर ने ‘संख्या सिद्धांत’ नामक ग्रंथ की भी रचना की है जिसके बारे में बहुत ही कम जानकारी है। इस ग्रंथ के बारे में संपूर्ण रुप से पूरी जानकारी नहीं  है क्योंकि इसका छोटा सा अंश एवं भाग प्राप्त हो पाया है। प्राप्त ग्रन्थ के अनुसार कुछ विद्वानों का कहना है कि उन्नत अंकगणित,त्रिकोणमिती के साथ-साथ कुछ अपेक्षाकृत संकल्पनाओं का वर्णन निहित है।

 प्रकाशिकी

प्रकाशिकी के क्षेत्र में वराहमिहिर का महत्वपूर्ण योगदान है। उनके अनुसार परावर्तन कणों के प्रति प्रकिर्णन (back scattering) से होता है। उन्होंने अपवर्तन का भी वर्णन किया है।

 क्रमचय संचय

वराहमिहिर ने वर्तमान समय में पास्कल त्रिकोण के नाम से प्रसिद्ध संख्याओं की खोज की। इनका उपयोग वे द्विपद के गुणांकों की गणना के लिए किया करते थे।

 अंकगणित

 वराहमिहिर ने शून्य एवं ऋणात्मक संख्याओं के बीजगणितीय गुणों का वर्णन किया है।

 तथ्य

  • वरहमिहिर, महाराजा विक्रमादित्य चंद्रगुप्त द्वितीय नवरत्नों में एक थे।
  •  महाराजा विक्रमादित्य चंद्रगुप्त द्वितीय ने वराहमिहिर को अपने राज्य का विशेष चिन्ह वराह से सम्मानित किया था।
  •  विज्ञान के इतिहास में वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने कहा था कि कोई शक्ति ऐसी है जो चीजों को जमीन के साथ चिपकाये रखती है। आज उसी शक्ति को गुरुत्वाकर्षण बल के नाम से जाना जाता है।
  • वराहमिहिर ने पर्यावरण विज्ञान( इकालॉजी),जल विज्ञान ( हाइड्रोलॉजी), भूविज्ञान (जियोलॉजी) आदि के संबंध में कुछ विशेष महत्वपूर्ण टिप्पणियां की थी। उनका कहना था कि पौधे और दीमक नीचे जमीन के जल स्तर का संकेत करते हैं।

 मृत्यु

महान ज्योतिष विज्ञान एवं खगोल शास्त्री वराहमिहिर की मृत्यु 587 ईसवी में मानी जाती है। वराहमिहिर की मृत्यु के बाद ज्योतिष गणितज्ञ ब्रह्म गुप्त ग्रंथ ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, खंड खाद्य, लल्ल सिद्धांत, वराहमिहिर के पुत्र पृथुयशा( होराष्ट पंच शिखा और चतुर्वेद पृथक दक स्वामी, भट्टोउत्पन्न, ब्रह्मदेव, श्रीमती आदि ने ज्योतिष शास्त्र  के संबंध में ग्रंथ लिखे हैं।