नदियों का संरक्षण और संवर्धन पर निबंध 2023

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नदियों का संरक्षण और संवर्धन पर निबंध

नदियों का संरक्षण और संवर्धन पर निबंध 2023, River

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नदियों का संरक्षण और संवर्धन

 नदी भू-स्थल पर प्रवाहित होने वाली एक प्रकार की जलधारा है, जिसका स्त्रोत कोई झील, झरना, या बारिश का पानी होता है और नदी खाड़ी एवं सागर में गिरती है। नदी शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के  नघा: से हुई है। संस्कृत में इसे सरिता नाम से भी जाना जाता हैं। 

नदिया सामान्यता: दो प्रकार की होती है सदानीरा एवं बरसाती। सदानीरा नदियों का स्त्रोत झील, झरना अथवा हिमनद होता है। इन नदियों में वर्ष पानी रहता है अथवा ये नदियां वर्ष भर जल से परिपूर्ण होती हैं, जबकि बरसाती नदियां बरसात के पानी पर निर्भर रहती हैं। 

गंगा, यमुना, कावेरी, ब्रह्मपुत्र, अमेजन, नील, नर्मदा नदी आदि सदानीरा नदियां हैं अथवा जो सूर्य की किरणों, मिट्टी और वायु का स्पर्श के साथ स्वतंत्र रूप से प्रभाहित हो वही नदी है। जो प्रकृति द्वारा निर्मित हो वहीं नदी कहलाती है।

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 नदी एवं मानव जीवन

 नदी के साथ मानव जीवन का बहुत ही घनिष्ट संबंध है। तथा कहा जाये तो नदी एवं मानव एक दूसरे के

पूरक हैं। नदी प्रकृति द्वारा मानव के लिए दिया गया  वरदान है। नदियों के बिना जीव प्राणियों का जीवन जगत में संभव नहीं है।

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नदियां सभ्यताओं को जन्म जन्म देती हैं अपितु उसका लालन-पालन भी करती हैं। इसीलिए हमारी भारती परंपरा मैं नदियों की पूजा की जाती है। नदियों का हमारे जीवन में बहुत ही महत्त्व है। नदिया मानव के जीवन के लिए अनमोल तथा माना यह जीवनदायिनी है।

भारत की नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्राचीन काल से विकास में महत्वपूर्ण  योगदान रहा है। सिंधु तथा गंगा नदियों की घाटियों में ही विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं का जन्म हुआ है। सिंधु घाटी और आर्य सभ्यता का जन्म हुआ।

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 नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है तथा नदियों का देश की आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास बहुत ही सहायक अंग है। नदियों की घाटियों से ही विश्व की प्राचीन सभ्यता का जन्म हुआ है। आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या एवं कृषि का केंद्र नदियों की घाटियों में ही पाया जाता है।

प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर या शहर नदियों के किनारे बसे हुए थे अथवा विकसित हुये थे। तथा आज भी देश के लगभग सभी व्यवसायिक एवं धार्मिक स्थल किसी ना किसी नदी से संबंधित है।

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नदियों का संरक्षण/ पुनर्जीवन

 भारतीय संस्कृति में नदियों एवं परंपरा में नदियों के जल संरक्षण को विशेष महत्व दिया गया है। यहां मानव जीवन को हमेशा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप में पृथ्वी, जल,वायु,आकाश, सूर्य, चंद्र,नदी, वृक्ष एवं पशु-पक्षी आदि के सहचार्य  देखा गया है।

नदियां एवं सभी समस्त प्राणी एक दूसरे पर आश्रित हैं। यही कारण है कि भारतीय चिंतन में नदी संरक्षण अवधारणा उतनी ही प्राचीन है, जितना यहां मानव जाति का ज्ञात इतिहास है।

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भारतीय संस्कृति का अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि यहां नदी संरक्षण का भाव अतिपुरा काल में मौजूद था, पर उसका स्वरूप भिन्न था। उस काल में कोई राष्ट्रीय जल नीति या नदियों पर काम करने वाली संस्थाएं नहीं थी।

 नदियों का संरक्षण हमारे नियमित क्रियाकलापों से ही जुड़ा हुआ था भारतीय दर्शन परंपरा यह मानती है कि हमारे शरीर की रचना पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि, वायु, जिन्हें पंचमहाभूत भी कहा गया है या पंचमहाभूत के नाम से जाने जाते हैं, से ही हुई है।

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नदियों का संरक्षण और संवर्धन पर निबंध 2023
नदियों का संरक्षण और संवर्धन पर निबंध

 नदियों का संरक्षण/पुनर्जीवन के उपाय एवं विधियां

  • नदियों के जल को प्रदूषित होने से बचाया जाये।
  •  नदियों के किनारे पेड़ पौधों का रोपण किया जाये।
  •  नदियों के क्षेत्र में फैले अतिक्रमण को हटाया जाये।
  •  नदियों का जल बारहमासी प्रभाहित होता रहे इसके लिए आवश्यक है कि अवैध उत्खनन को रोका जाये।
  •  गंदे नालों एवं कारखानों से निकलने वाला अपशिष्ट पदार्थों को नदियों में ना छोड़ा जाये।
  •  नदियों में तथा उसके आस-पास के खेतों में कीटनाशकों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  •  खेती की सिंचाई के लिये नदियों का पानी कम से कम ले जिससे इनमें पानी की कमी ना रहे।
  •  नदियों के संरक्षण एवं संवर्धन को लेकर लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए।

नदियों का संरक्षण/ पुनर्जीवन में समाज और स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका नदियों का संरक्षण/ पुनर्जीवन में समाज और स्वैच्छिक संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। शैक्षिक संगठनों के माध्यम से लोगों में या धारणा विकसित हुई है कि नदियों का असितत्व और पुनर्जीवन में समाज का महत्वपूर्ण योगदान है।

इसके अलावा  और भी कई कार्य हैं जिनसे नदियों को संरक्षित और संवर्धित किया जा सकता है। गैर सरकारी संगठन या स्वयंसेवी संस्था, सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट या इंडिया ट्रस्ट एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत की जाती हैं। कुछ कंपनी एक्ट के अंतर्गत भी पंजीकृत है। ये संगठन एवं निम्नलिखित आवश्यक कार्यों  को संपादित कर स्थानीय जनता तक सीधा संबंध स्थापित कर सकते हैं-

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  •  माना एवं नदियों के मध्य अंतर क्रियाओं सहित परिस्थितियों के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य करना।
  •  प्रदूषण के विरुद्ध गतिविधियों का संचालन करना।
  •  प्रदूषणकारी उद्योगों, संगठनों व पद्धतियों के विरुद्ध जनता को कानूनी सहायता उपलब्ध कराना।
  •  विकास के लिए शिक्षित लोगों को संसाधित व्यक्ति के रूप में प्रशिक्षित करना।
  •  सरकारी नीति अन्य पहलुओं पर जनता की प्रतिक्रिया की जानकारी सरकारों को उपलब्ध कराने के लिए मुख्य प्रतिनिधि के रूप में कार्य करना।
  •  सक्रिय नीति अनुसंधान एवं संरक्षण गतिविधियों को संचालित करना।
  •  सामाजिक जागरूकता का ज्ञान प्रसार हेतु लोकप्रिय पत्र – पत्रिकाओं तथा वैज्ञानिक अनुसंधान पत्रिकाओं का प्रकाशन कार्य संपादित करना।
  •  स्थानीय व सामाजिक समस्याओं के समाधान में लोगों की सहायता करना।
  •  इन लोगों के अनुभवों विज्ञान के प्रसार के लिये व्याख्यानों, संगोष्ठीयों एवं सम्मेलनों का आयोजन करना।
  •  समाज और स्वैच्छिक संगठन एक ही मंच पर उपस्थित होकर इस विषयों से संबंधित विचार विमर्श कर नीतियों का निर्धारण कर सकते हैं। निति निर्धारित कर जिम्मेदारी तय की जा सकती है और जन सहभागिता सुनिश्चित की जा सकती है।
  •   स्वैच्छिक संगठन भी समाज के ही अंग होते हैं और इनके माध्यम से नदियों पर कार्य किया जा सकता है।
  •  समाज और संगठन मिलकर नदियों के पुनर्जीवन तथा संवर्धन के लिए आगे आकर प्रयास कर सकते हैं।

 नदियों का महत्व

 प्राचीन काल से ही भारत में नदियों का अत्यधिक महत्त्व रहा है। इसी महत्त्व को देखते हुए यहां नदियों की पूजा की परंपरा स्थापित हुई। यह परंपरा आज भी पहले की ही तरह चलती आ रही है, लेकिन इसके मूल में निहित वास्तविक उद्देश हम भूल चुके हैं। नदियों से हमें बहुत कुछ मिलता है। प्राचीन काल ही नहीं, आज भी बहुत हद तक हमारा जीवन नदियों पर निर्भर है।

इनके प्रति सम्मान का भाव बनाये रखना। इसलिए आवश्यक है ताकि हम स्वच्छता और पवित्रता को अनंत काल तक बनाये रख सकें। मानव जीवन नदी पर आश्रित हैं। प्राणियों के जीवन की नदी के बिना जीवन की कल्पना करना भी कठिन है। मानव को नदी की उपयोगिता एवं महत्व समझते हुये संरक्षण और संवर्धन करना जरूरी है।

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 नदियों का विलुप्तीकरण

 केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने अध्ययन में कहां है कि देशभर के 900 से अधिक शहरों और कस्बों का 70 प्रतिशत गंदा पानी पेयजल की प्रमुख स्त्रोत नदियों में बिना शोधन के ही छोड़ दिया जाता है। कारखानों और मिल भी नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं। हमने जीवनदायिनी नदियों को सिकोड़ को रख दिया है।

देश की 70 फीसदी नदियां प्रदूषित हैं और मरने के कगार पर हैं। इनमें गुजरात की अमला खेड़ी, साबरमती और  खारी, आंध्र प्रदेश की मुंशी, दिल्ली में यमुना, महाराष्ट्र की भीमा, हरियाणा की मारकंडा, उत्तर प्रदेश की काली और हिंडन नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं। गंगा, नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी, ब्रह्मपुत्र, सतलुज, रावि,व्यास, झेलम आदि की स्थिति खराब है।

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सब जानते हैं कि नदियों के किनारे ही अनेक मानव सभ्यताओं का जन्म और विकास हुआ है।

नदी मानव संस्कृति की जननी है। प्रकृति की गोद में रहने वाले हमारे पूर्वज नदी जल की अहमियत समझते थे। निश्चित ही यही कारण रहा होगा कि उन्होंने नदियों की महिमा में ग्रंथों तक की रचना कर दी और अनेक ग्रंथों पुराणों में नदियों की महिमा का उल्लेख किया है।

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 भारत के महान पूर्वजों ने नदियों को अपनी मां अब देवी स्वरूप बताया है। नदियों के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है, इस सत्य को वे भली-भांति जानते थे। आज के मनुष्य को भी इस सत्य को जानना और समझना होगा।   

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