जलवायु परिवर्तन पर निबंध 2023

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जलवायु परिवर्तन पर निबंध

जलवायु परिवर्तन पर निबंध 2023

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जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में एक प्रकार का बदलाव होता है जैसे कि हम गर्मी के मौसम में गर्मी व सर्दी के मौसम में ठंड अनुभव होता है। यह सब जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में हुए बदलाव के कारण होता है। मौसम, किसी भी क्षेत्र की औसत जलवायु होती है जिसे को समयावधि के लिये वहां अनुभव किया जाता है।

जलवायु परिवर्तन पर निबंध 2023

इस मौसम को तय करने बाले मानकों में वर्षा, सूर्य प्रकाश, हवा,नमी व तापमान प्रमुख हैं। मौसम में बदलाव काफी जल्द होता है  लेकिन जलवायु में बदलाव आने में काफी समय लगता है और इसलिए ये कम दिखाई देते हैं।

इस समय पृथ्वी के जलवायु में अत्याधिक परिवर्तन हो रहा है और सभी प्रकार के प्राणियों ने इस प्रकार के बदलाव के साथ सामंजस्य बिठा लिया है परंतु पिछले 150 से 200वर्षों में ये जलवायु परिवर्तन इतनी तीव्रता के साथ सामंजस्य बिठाने में मुश्किल हो रहा है। इस परिवर्तन के लिये एक प्रकार से मानवीय क्रियाकलाप ही जिम्मेदार है।

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 जलवायु परिवर्तन के कारण

 जलवायु परिवर्तन के कारणों को दो भागों में बांटा जा सकता है- प्राकृतिक करण और मानवीय कारण।

प्राकृतिक कारण 

 जलवायु परिवर्तन के लिए अनेक प्राकृतिक कारण भी जिम्मेदार हैं। इनमें से प्रमुख हैं – महाद्वीपों का खिसकना, ज्वालामुखी, समुद्री तरंगे और धरती का घुमाव।

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 महाद्वीपों का खिसकना

 हम आज जिन महाद्वीपों को देख रहे हैं, इस धरा की उत्पत्ति के साथ ही बने थे तथा इन पर समुद्र में तैरते रहने के कारण तथा वायु के प्रवाह के कारण इनका खिसकना निरन्तर जारी है। इस प्रकार की हलचल से समुद्र में तरंगे व वायु प्रवाह उत्पन्न होता है। इस प्रकार की वादलावों से जलवायु में परिवर्तन होते हैं। इस प्रकार से महाद्वीपों का खिसकना आज भी जा रही है।

 ज्वालामुखी

 जब भी कोई ज्वालामुखी फूटता है वह काफी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड, पानी, धूलकण और राख के कणों का वातावरण में उत्सर्जन करता है। भले ही ज्वालामुखी का प्रभाव कुछ ही दिनों तक काम करें।

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 लेकिन इस दौरान काफी ज्यादा मात्रा में निकली हुई गैसे, जलवायु को लंबे समय तक प्रभावित कर सकती है। गैस व धूलकण सूर्य की किरणों का मार्ग अवरोद्ध कर देते हैं, फल स्वरूप वातावरण का तापमान कम हो जाता है।

जलवायु परिवर्तन पर निबंध 2023
जलवायु परिवर्तन पर निबंध

 पृथ्वी का झुकाव

 धरती 23.5 डिग्री के कोण पर, अपने अक्ष पर झुकी हुई है। इसके इस झुकाव कारण से मौसम के क्रम में परिवर्तन होता है। अधिक झुकाव का अर्थ है अधिक गर्मी व अधिक सर्दी और कम झुकाव का अर्थ है कम मात्रा में गर्मी व कम मात्रा में सर्दी।

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 समुद्री तरंगे

 समुद्र, जलवायु का एक प्रमुख भाग है। वे पृथ्वी के 71% भाग पर फैले हुए हैं। समुद्र द्वारा पृथ्वी की सतह की अपेक्षा दुगनी दर से सूर्य की किरणों अवशोषण किया जाता है। समुद्री तरंगों के माध्यम से संपूर्ण पृथ्वी पर बड़ी मात्रा में ऊष्मा का प्रसार होता है।

 मानवीय कारण

 ग्रीन हाउस प्रभाव

 पृथ्वी द्वारा सूर्य से ऊर्जा ग्रहण की जाती है अथवा सूर्य से आने वाली ऊष्मा का पृथ्वी द्वारा अवशोषण किया जाता है जिसके कारण धरती सतह गर्म हो जाती है। जब ऊर्जा वातावरण से होकर गुजरती है, तो कुछ मात्रा में, लगभग 30 प्रतिशत ऊर्जा वातावरण में ही रह जाती है।

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इस ऊर्जा का कुछ भाग धरती की सतह तथा समुद्र की जरिये परावर्तित होकर पुनः  वातावरण में चला जाता है। वातावरण की कुछ गैसों द्वारा पूरी पृथ्वी पर एक परत सी बना ली जाती है व वे इस ऊर्जा का कुछ भाग भी शौक लेते हैं। इन गैसों में शामिल होती है कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड व जल कण, जो वातावरण के 1% से भी कम भाग में होते है। इन गैसों को ग्रीन हाउस गैसें भी कहा जाता है।

जिस प्रकार से हरे रंग का कांच ऊष्मा को अंदर आने से रोकता है, कुछ इसी प्रकार से ये गैसें, पृथ्वी की ऊपर एक परत बनाकर अधिक ऊष्मा से इसकी रक्षा करती है। इसी कारण इसे ग्रीन हाउस प्रभाव भी कहा जाता है।

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इस परत को ओजोन परत के नाम से जाना जाता है। आज इसी परत में छेद हो गया है। जिसके छेद के कारण सूर्य से आने वाली पराबैगनी किरणों का अवशोषण कम कर रही है। जिससे पृथ्वी का तापमान लगातार बड़ रहा है। और जिससे पृथ्वी गर्म हो रही है। 

 कार्बन डाइऑक्साइड तब बनती है जब हम किसी भी प्रकार का ईंधन जलाते हैं, जैसे- कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस आदि। इसके बाद हम वृक्षों को भी नष्ट कर रहे है, ऐसे में वृक्षों में संचित कार्बन डाइऑक्साइड भी वातावरण में जा मिलती है। खेती के कामों में वृद्धि,जमीन के उपयोग में विविधता व अन्य कई स्त्रोतों के कारण वातावरण में मिथेन और नाइट्रस ऑक्साइड गैस स्राव भी अधिक मात्रा में होता है।

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 औद्योगिक कारणों से भी ग्रीन हाउस गैस प्रभाव गैस वातावरण में घुल रही है,जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन ऑटोमोबाइल से निकलने वाले एवं वाहनों से निकलने वाले धुएं के कारण ओजोन परत में छिद्र हो रहा है। इस प्रकार के परिवर्तनों के कारण वैश्विक तापन अथवा जलवायु परिवर्तन जैसे परिणाम सामने दिखते हैं।

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 ग्रीन हाउस गैसें एवं उनका स्त्रोत

  •  कार्बन डाइऑक्साइड निश्चित तौर पर वायुमंडल की सबसे प्रमुख गैस है। उद्योगों एवं वाहनों,एवं वनों के विनाश के कारण कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन वृद्धि में योगदान किया है।
  •  अपघटित न होने वाले पदार्थों अत्याधिक उपयोग जैसे पॉलीथिन,प्लास्टिक आदि का करना।
  •  खेती में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का अत्याधिक मात्रा में प्रयोग करना।
  •  तेल शोधन, कोयला खदान एवं गैस पाइपलाइन से रिसाव से भी मिथेन गैस का उत्सर्जन होता है।

 जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

 जलवायु परिवर्तन से मानव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी की सतह का तापमान लगातार बढ़ रहा है। जिससे कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। जैसे –

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 खेती

 बढ़ती जनसंख्या के कारण भोजन की मांग में भी बृद्धि हुई है। जिससे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अधिक मात्रा में हो रहा है। जलवायु में परिवर्तन का सीधा प्रभाव खेती पर पड़ेगा क्योंकि तापमान,वर्षा आदि में बदलाव आने से मिट्टी की क्षमता,कीटाणु और फैलने वाली बीमारियां अपने सामान्य तरीके से अलग प्रसारित होंगी।

 यह भी कहा जा रहा है कि भारत में दलहन का मदन काम हो रहा है। अति जलवायु परिवर्तन जैसे तापमान में वृद्धि के परिणामस्वरूप आने वाले बाढ़ आदि से खेती का नुकसान होगा।

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 मौसम

 मौसम गर्म होने से वर्षा का चक्र प्रभावित होता है, इससे बाढ़ या सूखे का खतरा भी हो सकता है, ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र के स्तर में वृद्धि की भी संभावना हो सकती हैं।

 समुद्र के जलस्तर में वृद्धि

ग्लेशियर का लगातार पिघलने से अनुमान लगाया जा रहा है। कि आने वाले समय में समुद्र के जलस्तर में वृद्धि अधिक देखी जा सकती है। समुद्र के स्तर में वृद्धि होने के विभिन्न प्रकार के दुष्परिणाम सामने आएंगे जैसे तटीय क्षेत्रों की बर्बादी, जमीन का पानी में निचले स्तर पर जाना,बाढ़, मिट्टी का अपरदन, खारे पानी की दुष्परिणाम आदि।

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इससे तटिये जीवन अस्त व्यस्त हो जाएगा,खेती,पेय,जल, मत्स्य पालन व मानव आदि का अस्तित्व तहस-नहस हो जाएगा।

 स्वास्थ्य

 वैश्विक ताप का मानवीय स्वास्थ्य पर अभी सीधा असर होगा,इससे गर्मी से संबंधित बीमारियों का प्रसार, कुपोषण और मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव होगा।

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 जंगल और वन्य जीवन

 प्राणी और पशु, ये प्राकृतिक वातावरण में रहने वाले हैं व ये जलवायु परिवर्तन के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं। यदि जलवायु में परिवर्तन का दौर इसी प्रकार से चलता रहा, तो कई जानवर व पौधे समाप्ति की कगार पहुंच जाएंगे।

 सुरक्षात्मक उपाय

  •  जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कमी की जाए।
  •  प्राकृतिक संसाधनों का कम दोहन किया जाए।
  •  प्राकृतिक ऊर्जा के स्त्रोतों को अपनाया जाए, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि।
  •  पेड़ों को बचाया जाए व अधिक वृक्षारोपण किया जाए।
  •  प्लास्टिक से बने पदार्थ एवं पॉलीथिन से बने पदार्थों का कम उपयोग किया जाए।
  •  वन्य प्राणियों का संरक्षण किया जाये।
  •  जैव विविधता को संरक्षित करना।
  •  वनों की कटाई पर रोक लगाई जाए और अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं।
  •  वाहनों से निकलने वाले धुएँ का प्रभाव कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का शक्ति से पालन करना होगा।
  •  ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिए मुख्य रूप से सीएफसी गैसों का उतसर्जन कम रोकना होगा  और इसके लिए फ्रिज, एयर कंडीशनर और दूसरी कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा। या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिससे सीएफसी गैसें कम निकलती हैं।
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