आर्यभट्ट का जीवन परिचय 2023

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आर्यभट्ट का परिचय

आर्यभट्ट का जीवन परिचय 2023

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आर्यभट्ट का जीवन परिचय 2023 प्रारंभिक जीवन

आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी में एवं विक्रम संवत के अनुसार 533 ईसवी में हुआ था। आर्यभट्ट का जन्म विक्रमादित्य द्वितीय के समय हुआ था। मगध शासक गुप्त साम्राज्य के साल में समुचित भारत प्रगति की ओर अग्रसर था।

 जब इनका जन्म हुआ था उस समय के काल को स्वर्णिम युग कहा जाता है। आर्यभट्ट का जन्म स्थान वर्तमान में जिसे पटना नाम से जाना जाता है अर्थात प्राचीन समय की मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र के निकट मे स्थित कुसुमपुर नामक गांव में हुआ था।

लेकिन कुछ इतिहासकार  उनके जन्म स्थान में मतभेद रखते हैं। उनका मानना है कि आर्यभट्ट का जन्म स्थान आकस्मिक महाराष्ट्र में हुआ था। आर्यभट्ट जी अपने जीवन काल में उच्च शिक्षा के लिए कुसुमपुर गए थे। कुसुमपुर में आर्यभट्ट जी कुछ समय वहां रहे भी थे।

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सातवीं शताब्दी के महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने कुसुमपुर की पहचान, पाटलिपुत्र के रूप में की जो वर्तमान में पटना के नाम से जाना जाता है यहां पर अध्ययन का महान बड़ा केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय स्थापित था। माना जाता है कि आर्यभट्ट इससे जुड़े रहे होंगे।

यह भी संभव है कि गुप्त साम्राज्य के अंतिम दिनों में आर्यभट्ट जी रहा करते थे। प्राचीन समय में पटना बिहार कुसुमपुर के नाम से जाना जाता था। जहां पर आर्यभट्ट का जन्म हुआ था। वह दक्षिण में था।

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 शिक्षा

 जिस प्रकार आर्यभट्ट के जन्म के बारे में इतिहासकारों का एक मत नहीं है। उसी प्रकार उनकी शिक्षा के बारे में विद्वानो में मत नहीं है। कुछ  विद्वान कहते हैं कि आर्यभट्ट जी शिक्षा प्राप्त करने के लिए पाटलिपुत्र गए थे।

आर्यभट्ट ने अपनी शिक्षा मगध साम्राज्य के पिछले नालंदा विश्वविद्यालय से की थी। यह उस समय का बिहार का विश्व प्रसिद्ध शिक्षा का केंद्र था। इसलिए कहा जाता है कि आर्यभट्ट ने उच्च शिक्षा नालंदा विश्वविद्यालय से प्राप्त की और 23 साल की उम्र में आर्यभट्टीय नामक ग्रंथ की रचना की।

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उनका आर्यभट्ट नामक ग्रन्थ काफी प्रसिद्ध हुआ। इनके ग्रंथ की प्रसिद्धी के कारण मगध नरेश बुध्य गुप्त ने उन्हें नालंदा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया था

आर्यभट्ट का परिचय
आर्यभट्ट का परिचय

 आर्यभट्ट की रचनाएं

आर्यभट्ट ने कई ग्रंथों की रचना की लेकिन वर्तमान समय में उनके चार ग्रंथ मौजूद है जिनके नाम आर्यभट्टीय,दश गीतिका, तंत्र एवं आर्यभट्ट के सिद्धांत है आर्यभट्ट इनका सबसे लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध ग्रंथ है।

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एक अन्य भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य ने अपने लेखों में आर्यभट्टीय इस ग्रंथ को लिखा है इसमें बहुत सारे विषयों जैसे खगोलीय विज्ञान, गोलीय तिरकोणमिति, अंकगणित, बीजगणित और सरल तिरकोणमिति का वर्णन है।

उन्होंने गणित और खगोलीय विज्ञान के अपने सारे अविष्कारों को श्लोकों के रुप मे लिखा है। इस ग्रन्थ आर्यभट्टीय यह नाम उनके शिष्य भास्कर प्रथम ने दिया था। आर्यभट्ट द्वारा रचित इस रचना को भास्कर जी अस्मक तंत्र भी कहते थे।

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सामान्य रूप से आर्यभट्ट 108 के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसमें 108 छंद एवं श्लोक निहित है। जिसकी प्रत्येक पंक्ति पुरानी स्वाभाविक परंपराओं का वर्णन करती है। यह रचना 108 छन्दों एवं 13 परिचयात्मक छंदों से निर्मित है। यह ग्रंथ में कुल 121 श्लोकों निर्मित की गई।

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इसे चार पदों एवं अध्यायों में बांटा गया है जो निम्न है।

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  1.  गीतिका पद
  2.  गणित पद
  3. काल क्रियापद
  4. गोल पद

 गीतिका पद

 इसमें 13 श्लोक निहित है। और आर्यभट्ट ग्रंथ के इस भाग में सूर्य,चंद्र एवं अन्य सभी गृह, हिंदू काल गणना एवं त्रिकोणमिति जैसे विषयों के संपूर्ण वर्णन किया गया है।

 गणित पद

 ग्रंथ का यह भाग 33 श्लोकों से बना है। इस ग्रंथ के भाग में अंक गणित,बीजगणित एवं रेखा गणित का संक्षिप्त वर्णन किया गया है।

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 काल क्रियापद

 आर्यभट्टीय ग्रन्थ के इस भाग में 25 श्लोक है। इस ग्रन्थ के भाग में काल गणना एवं ज्योतिष गणना के बारे में जानकारी दी गई है।

 गोल पद

 आर्यभट्टीय ग्रन्थ के इस भाग में 50 श्लोक है। ग्रंथ के इस भाग में ग्रहों की स्थिति, ग्रहों द्वारा की जाने वाली गतिया, स्पेस साइंस, सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण आदि के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई है।

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 गणित योगदान

 शून्य की खोज

 शून्य की खोज आर्यभट्ट ने गणितीय गणनाओं को पूर्ण करने के लिए सर्वप्रथम दशमलव का उपयोग किया। उसी दशमलव को शून्य का नाम दिया। जिसकी आकृति कुछ इस प्रकार से बनाई गई थी सामान्यता: जो व्रत के आकार के समान थी। वर्तमान समय में गणितीय गणनायों में जिस उपयोग होता है वह आर्यभट्ट की देन है।

पाई की खोज

 आर्यभट्ट जी ने पाई के मान की गणना की इसके लिए उन्होंने सर्वप्रथम एक व्रत लिया जिसके व्यास का मान निश्चित रखा। उस वृत्त का व्यास उन्होंने 20000  रखा।  और उन्होंने ने बताया कि 100 में 4 जोड़कर उसमें 8 से गुणा कर जायें तथा प्राप्त परिणाम में यार 62000 को जोड़ा जायें तथा अंतिम प्राप्त परिणाम में ब्यास से भाग दे दीजिए।

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100+4×8+62000/20000=3.1416

इस प्रकार से आपके पास जो मान प्राप्त होगा वह मान 3.1416 होगा। जो वर्तमान समय के पाई के तीन दशमलव तक सही है।

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पृथ्वी की पारिधि

 आर्यभट्ट द्वारा पृथ्वी की परिधि गणना कर पृथ्वी की पारिधि की लम्बाई 39968.05 किलो मीटर ज्ञात की थी। जो की वर्तमान परिधि लम्बाई 40075.01 किलो मीटर से 0.2 प्रतिशत कम है।

 वायुमंडल की ऊंचाई

 आर्यभट्ट ने अपने शोध कार्यों में गणना कर वायुमंडल की ऊचाई 80 किलो मीटर बताई थी। वर्तमान की गणनाओं मे 1600 किलो मीटर से भी अधिक है। वायु मंडल ज्यादातर 99% हिस्सा 80 किलो मीटर के अंदर है।

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 बीजगणित

 बीजगणित के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बीजगणित के वर्गो एवं घनों की श्रृंखला को ज्ञात करने के लिए एक सूत्र का आविष्कार किया है जो इस प्रकार है  1¹+2²+……………+n²=n(n-1)(2n+1)/6

 खगोल विज्ञान

खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भी शोध कार्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

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 पृथ्वी की घूर्णन गति 

उनहोंने बताया है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन गति करती है। ना कि सूर्य घूमता है पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण दिन रात होते हैं। पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमने में 23 घंटे 56 मिनट 1 सेकंड का समय लेती है।

 पृथ्वी की परिक्रमण गति 

इसके अतिरिक्त पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा भी करती है 365 दिन 6घंटे 12 मिनट और 30सेकंड होते है। इसके कारण समय परिवर्तन होता एवं माह वर्ष होते है।

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 गृह

 आर्यभट्ट ने बताया कि ग्रह स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित नहीं होते है बल्कि सूर्य के प्रकाश से परिवर्तित होते हैं।

 मृत्यु

 इनकी मृत्यु का कोई निश्चित स्थान अभी तक सटीक ज्ञात नहीं है। इनकी मृत्यु 550 ईसवी में 74 वर्ष की आयु में हुई थी। आर्यभट्ट का गणित एवं खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान है।

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आज भी पंचाग बनाने के लिए आर्यभट्ट की गणनाओं का उपयोग किया जाता है। गणित और खगोल विज्ञान के क्षेत्रों में उनके योगदान की स्मृति में भारत के पहले उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया है।

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